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________________ २०८ आराधना कथाकोश पिण्याकगन्धके पास आया। पर पिण्याकगन्ध तो वहाँ था नहीं, तब वह उसके लडके विष्णदत्तके हाथ सलाई देकर बोला-आपके पिताजीने ऐसी बहुतेरी सलाइयाँ मुझसे मोल ली हैं। अब यह केवल एक ही बची है। इसे आप लेकर मुझे इसकी कोमत दे दीजिये। विष्णुदत्तने उसे यह कहकर टाल दिया, कि मैं इसे लेकर क्या करूँगा ? मुझे जरूरत नहीं । तुम पीछी इसे ले जाओ । इस समय एक सिपाहीने उडुको देख लिया। उसने खोदने के लिए वह सलाई उससे छुड़ा ली। एक दिन वह सिपाही जमीन खोद रहा था। उससे सलाई पर जमा हुआ कोट साफ हो जानेसे कुछ लिखा हुआ उसे देख पड़ा। लिखा यह था कि “सोनेकी सौ सलाइयाँ सन्दूकमें हैं। यह लिखा देखकर सिपाहीने उडुको पकड़ लाकर उससे सन्दूककी बाबत पूछा । उडुने सब बातें ठीक-ठीक बतला दीं। सिपाही उडुको राजा के पास ले गया। राजाके पूछने पर उसने कहा कि मैंने ऐसी अट्ठानवे सलाइयाँ तो पिण्याकगन्ध सेठको बेची हैं और एक जिनदत्त सेठको । राजाने पहले जिनदत्तको बुलाकर सलाई मोल लेनेकी बाबत पूछा। जिनदत्तने कहा-महाराज, मैंने एक सलाई खरीदी तो जरूर है, पर जब मुझे यह मालूम पड़ा कि वह सोने की है तो मैंने उसकी जिनप्रतिमा बनवा लो। प्रतिमा मन्दिरमें मौजूद है। राजा प्रतिमाको देखकर बहुत खुश हुआ। उसने जिनदत्तको इस सच्चाई पर उसका बहुत मान किया, उसे बहुमूल्य वस्त्राभूषण दिये। सच है, गुणोंकी पूजा सब जगह हुआ करती है। इसके बाद राजाने पिण्याकगन्धको बुलवाया। पर वह घर पर न होकर गाँव गया हुआ था। राजाको उसके न मिलनेसे और निश्चय हो गया कि उसने अवश्य राजधन धोखा देकर ठग लिया है। राजाने उसी समय उसका घर जब्त करवा कर उसके कुटुम्बको कैदखाने में डाल दिया। इसलिए कि उसने पूछ-ताछ करने पर भी सलाइयोंका हाल नहीं बताया था। सच है, जो आशाके चक्कर में पड़कर दूसरोंका धन मारते हैं, वे अपने हाथों हो अपना सर्वनाश करते हैं। उधर ब्याह हो जानेके बाद पिण्याकगंध घरकी ओर वापिस आ रहा था। रास्तेमें ही उसे अपने कुटुम्बकी दुर्दशाका समाचार सुन पड़ा। उसे उसका बड़ा दुःख हुआ। उसने अपने इस धन-जनको दुर्दशाका मूल कारण अपने पांवोंको ठहराया । इसलिए कि वह उन्हींके द्वारा दूसरे गाँव गया था। पाँवों पर उसे बड़ा गुस्सा आया और इसीलिए उसने एक बड़ा भारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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