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________________ २०४ आराधना कथाकोश "गंगाके किनारे कीचड़ में एकबार एक हाथीका बच्चा फँस गया। विश्वभूति तापसने उसे तड़फते हुए देखा। व कीचड़से उस हाथोके बच्चे. को निकालकर अपने आश्रममें लिवा ले आया। उसने उसे बड़ी सावधानीके साथ पाला-पोसा भी। धीरे-धीरे वह बड़ा होकर एक महान् हाथोके रूपमें आ गया। श्रेणिकने इसकी प्रशंसा सुनकर इसे अपने यहाँ रख लिया। हाथी जब तक तापसके यहाँ रहा तब तक बड़ी स्वतंत्रतासे रहा। वहाँ इसे कभी अंकुश वगैरहका कष्ट नहीं सहना पड़ा। पर जब यह श्रेणिक के यहाँ पहँचा तबसे इसे बन्धन, अंकूश आदिका बहत कष्ट सहना 'पड़ता था। इस दुःखके मारे एक दिन यह सांकल तोड़-ताड़ कर तापसके आश्रममें भाग आया। इसके पीछे-पीछे राजाके नौकर भी इसे पकड़नेको आये । तापसी मोठे-मोठे शब्दोंसे हाथीको समझा कर उसे नौकरोंके सुपुर्द करने लगा। हाथीको इससे अत्यन्त गुस्सा आया। सो इसने उस बेचारे तापसकी हो जान ले ली।" तो क्या मुनिराज, हाथीको यह उचित था, कि वह अपनेको बचानेवालेको ही मार डाले? इसके उत्तरमें मुनि 'ना' कहकर और एक कथा कहने लगे। उन्होंने कहा "हस्तिनागपुरकी पूरब दिशामें विश्वसेन राजाका बनाया आमोंका एक बगोचा था। उसमें आम खूब लग रहे थे। एक दिन एक चील मरे साँपको चोंचमें लिए आमके झाड़पर बैठ गई। उस समय साँपके जहरसे एक आम पक गया, पीला-सा पड़ गया। मालोने उस पके फलको ले जाकर राजाको भेंट किया। राजाने उसे "प्रेमोपहार" के रूपमें अपनी प्रिय रानी धर्मसेनाको दिया। रानी उसे खाते ही मर गई । राजाको बड़ा गुस्सा आया और उसने एक फलके बदले सारे बगीचेको ही कटवा डाला । मुनिराजने कहा, तो क्या सेठ महाशय, राजाका यह काम ठीक हुआ ? सेठने भी 'ना' कहकर और एक कथा कहना शुरू की। वह बोला "एक मनुष्य जंगलसे चला जा रहा था। रास्तेमें वह सिंहको देखकर डरके मारे एक वृक्ष पर चढ़ गया। जब सिंह चला गया, तब यह नीचे उतरा और जाने लगा। रास्तेमें इसे राजाके बहुतसे आदमी मिले, जो कि भेरीके लिए अच्छे और बड़े झाड़को तलाश में आये थे। सो इस दुष्ट मनुष्यने वह वृक्ष इन लोगोंको बता दिया, जिस पर चढ़कर कि इसने अपनी जान बचाई थी । । राजाके आदमी उस घनी छायावाले सुन्दर वृक्षको काटकर ले गये।" मुनिराज, जिसने बन्धुकी तरह अपनी रक्षा की, मरनेसे बचाया, उस वृक्षके लिए इस दुष्टको ऐसा करना योग्य था क्या ? मुनिराजने 'नहीं' कहकर और एक कथा कही। वे बोले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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