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________________ २०२ आराधना कथाकोश स्त्रीका नाम कपिला था। इसके कोई लड़का बाला नहीं था। एक दिन शिवशर्मा किसो दूसरे गाँवसे अपने शहरकी ओर लौट रहा था। रास्तेमें एक जंगलमें उसने एक नेवलाके बच्चेको देखा। शिवशर्माने उसे घर उठा लाकर अपनी प्रियासे कहा-ब्राह्मगीजो आज मैं तुम्हारे लिए एक लड़का लाया हूँ। यह कहकर उसने नेवलेको कपिलाकी गोद में रख दिया। सच है, मोहसे अन्धे हए मनुष्य क्या नहीं करते ? ब्राह्मणोने उसे ले लिया और पाल-पोस कर उसे कुछ सिखा-विखा भी दिया । नेवलेमें जितना ज्ञान और जितनी शक्ति थी वह उसके अनुसार ब्राह्मणोका बताया कुछ काम भी कर दिया करता था। भाग्यसे अब ब्राह्मणोके भी एक पुत्र हो गया। सो एक दिन ब्राह्मणी बच्चेको पालने में सुलाकर आप धान खाँडनेको चली गई और जाते समय पुत्ररक्षाका भार वह नेवलेको सौंपती गई। इतनेमें एक सर्पने आकर उस बच्चेको काट लिया। बच्चा मर गया। क्रोधमें आकर नेवलेने सर्पके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इसके बाद वह खूनभरे महसे ही कपिलाके पास गया । कपिला उसे खूनसे लथ-पथ भरा देखकर कांप गई। उसने समझा कि इसने मेरे बच्चेको खा लिया। उसे अत्यन्त क्रोध आया । क्रोधके वेगमें उसने न कुछ सोचा-विचारा और न जाकर देखा ही कि असल में बात क्या है, किन्तु एक साथ ही पासमें पड़े हुए मूसलेको उठा कर नेवले पर दे मारा । नेवला तड़फड़ा कर मर गया। अब वह दौड़ी हुई बच्चेके पास गई। देखती है तो वहां एक काला भुजंग सर्प मरा हुआ पड़ा है। फिर उसे बहुत पछतावा हुआ। ऐसे मूल्को धिक्कार है जो बिना विचारे जल्दीमें आकर हर एक काम कर बैठते हैं।" अच्छा सेठ महाशय, कहिए तो सर्पके अपराध पर बेचारे नेवलेको इस प्रकार निर्दयतासे मार देना ब्राह्मणीको योग्य था क्या ? जिनदत्तने कहा-नहीं। यह उसको बड़ी गलती हुई । यह कहकर उसने फिर एक कथा कहना आरम्भ की "बनारसके राजा जितशत्रुके यहाँ धनदत्त राज्यवैद्य था। इसकी स्त्रीका नाम धनदत्ता था। वैद्य महाशयके धनमित्र और धनचन्द्र नामके दो लड़के थे। लाड़-प्यारमें रहकर इन्होंने अपनी कूलविद्या भी न पढ़ पाई। कुछ दिनों बाद वैद्यराज काल कर गये। राजाने इन दोनों भाइयोंको मुर्ख देख इनके पिताकी जीविका पर किसी दूसरेको नियुक्त कर दिया। तब इनकी बुद्धि ठिकाने आई। ये दोनों भाई अब वैद्यशास्त्र पढ़नेको इच्छासे चम्पापुरीमें शिवभूति वैद्यके पास गये। इन्होंने वैद्यसे अपनी सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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