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________________ आराधना कथाकोश रक्षा पा जाता है । देवरतिके भी कोई ऐसा पुण्ययोग था, जिससे रानीके नदीमें डाल देनेपर भी वह बच गया । कोई गहरो चोट उसके नहीं आई। वह नदीसे निकलकर आगे बढ़ा। धीरे-धीरे वह मंगलपुर नामक शहरके निकट आ पहुँचा । देवरति कई दिनों तक बराबर चलते रहनसे बहुत थक गया था, उसे बोचमें कोई अच्छो जगह विश्राम करनेको नहीं मिली थी, इसलिए अपनी थकावट मिटाने के लिए वह एक छायादार वृक्षक नीचे सो गया। मानों जैसे वह सुख देनेवाले जैनधर्मकी छत्रछायामें ही सोया हो। मंगलपुरका राजा श्रीवर्धन था। उसके कोई सन्तान न थी। इसी समय उसको मृत्यु हो गई। मंत्रियोंने यह विचार कर, कि पट्टहाथीको. एक जलभरा घड़ा दिया जाकर वह छोड़ा जाय और वह जिसका अभिषेक करे वही अपना राजा हो, एक हाथीको छोड़ा । दैवकी विचित्र लीला है, जो राजा है, उसे वह रंक बना देता है और जो रंक है, उसे संसारका चकवर्ती सम्राट बना देता है। देवरतिका दैव जब उसके विपरीत हुआ तब तो उसे उसने पथ-पथका भिखारी बनाया, और अनुकूल होनेपर पीछा सब राज-योग मिला दिया। देवरति भरनींदमें झाड़के नीचे सो रहा था। हाथी उधर ही पहुंचा और देवरतिका उसने अभिषेक कर दिया। देवरति बड़े आनन्द-उत्साहके साथ शहरमें लाया जाकर राज्य. सिंहासनपर बैठाया गया। सच है, पुण्य जब पल्लेमें होता है तब आपत्तियाँ भी सुखके रूपमें परिणत हो जाती हैं। इसलिए सूखकी चाह करनेवालोंको भगवान्के उपदेश किये हए मार्ग द्वारा पुण्य-कर्म करना चाहिए। भगवान्की पूजा, पात्रोंको दान, व्रत, उपवास ये सब पुण्य-कर्म हैं । इन्हें सदा करते रहना चाहिए । देवरति फिर राजा हो गये। पर पहले और अबके राजापनमें बहुत फर्क है । अब वे स्वयं सब राज-काज देखा करते हैं। पहलेसे अब उनकी परिणतिमें भी बहुत भेद पड़ गया है। जो बातें पहले उन्हें बहुत प्यारी थों और जिनके लिए उन्होंने राज्य-भ्रष्ट होना तक स्वीकार कर लिया था, अब वे हो बातें उन्हें अत्यन्त अप्रिय हो उठीं। अब वे स्त्री नामसे घृणा करते हैं। वे एक कुलकलंकिनीका बदला सारे संसारकी स्त्रियोंको कुलकलंकिनी कहकर लेते हैं। वे अब गुणवती स्त्रियोंका भी मुंह देखना पसन्द नहीं करते । सच है, जो एकबार दुर्जनों द्वारा ठगा जाता है वह फिर अच्छे पुरुषोंके साथ भी वैसा ही व्यवहार करने लगता है । गरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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