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________________ १३६ आराधना कथाकोश महाबल ! तुम यदि वास्तवमें मुझे अपना पिता समझते हो तो इस पत्र लाने वालेके साथ श्रीमतोका ब्याह शीघ्र कर देना। अपनेको बड़े भाग्यसे ऐसे वरकी प्राप्ति हुई है । मैंने इसकी साखें वगैरह सब अच्छी तरह देख ली हैं। कहीं कोई बाधा नहीं आती है। इस कामके लिए तुम मेरो भी अपेक्षा नहीं करना । कारण, सम्भव है मुझे आनेमें कुछ विलम्ब हो जाय । फिर ऐसा योग मिलना कठिन है। वरके मान-सम्मानमें तुमलोग किसो प्रकारको कमी मत रखना।" __ इस प्रकार पत्र लिखकर अनंगसेनाने पहलेको तरह उसे धनकोतिके गलेमें बाँध दिया अथवा यों कह लीजिए कि उसने धनकीर्तिको मानों जीवन प्रदान किया। इसके बाद वह अपने घरपर लौट आई। ___ अनंगसेनाके चले जानेके बाद धनकोतिको भी नींद खुली। वह उठा और श्रीदत्तके घर पहुंचा। उसने पत्र निकाल कर श्रीदत्तको स्त्रोके हाथमें सौंपा। पत्रको उसके पुत्र महाबलने भी पढ़ा । पत्र पढ़कर उन्हें बहुत खुशो हुई । धनकीर्तिका उन्होंने बहुत आदर-सम्मान किया तथा शुभ मुहूर्तमें श्रीमतीका ब्याह उसके साथ कर दिया । सच कहा है---- सम्भवेत्कृतपुण्यानां महापायेपि सत्सुखम् । -ब्र नेमिदत्त अर्थात्-पुण्यवान् जीवोंको महासंकटके समय भी जीवनके नष्ट होनेके कारणोंके मिलने पर भी सुख प्राप्त होता है । यह हाल जब श्रीदत्तको ज्ञात हुआ, तो वह घबराकर उसी समय दौड़ा हुआ आया । उसने रास्तेमें ही धनकोतिको मार डालनेकी युक्ति सोचकर अपनो नगरीके बाहर पार्वतीके मन्दिर में एक मनुष्यको इसलिए नियुक्त कर दिया कि मैं किसी बहानेसे धनकीतिको रातके समय यहाँ भेजंगा, सो उसे तुम मार डालना। इसके बाद वह अपने घर पर आया और एकान्तमें अपने जमाईको बुलाकर उसने कहा-देखोजी, मेरी कुल परम्परामें एक रीति चली आ रही है, उसका पालन तुम्हें भी करना होगा। वह यह है कि नवविवाहित वर रात्रिके आरम्भमें उड़दके आटेके बनाए हुए तोता, काक, मुर्गा आदि जानवरोंको लाल वस्त्रसे ढककर और कंकण पहने हए हाथमें रखकर बड़े आदरके साथ शहरके बाहर पार्वतीके मन्दिरमें ले जाय और शान्तिके लिए उनकी बलि दे। यह सुनकर धनकोति बोला-जैसे आपकी आज्ञा । मुझे शिरोधार्य है । इसके बाद वह बलि लेकर घरसे निकला। शहरके बाहर पहुंचते ही उसे उसका साला महाबल मिला। महाबलने उससे पूछा-क्योंजी ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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