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________________ यमपाल चांडालकी कथा १२५ का उल्लंघन किया है, इसलिये उसे ले जाकर शूली चढ़ा दो । कोतवाल राजाज्ञा के अनुसार धर्मको शूलीके स्थानपर लिवा ले गया और नौकरोंको भेजकर उसने यमपाल चाण्डालको इसलिये बुलाया कि वह धर्मको शूली पर चढ़ा दे । क्योंकि यह कन के सूपूर्द था । पर यमपालने एक दिन सर्वोषधिऋद्धिधारी मुनिराजक द्वारा जिनधर्मका पवित्र उपदेश सुनकर, जो कि दोनों भवों में सुखका देनेवाला है, प्रतिज्ञा कि थी कि "मैं चतुर्दशी के दिन कभी जीव हिंसा नहीं करूंगा।" इसलिये उसने राज नौकरोंको आ हुए देखकर अपने व्रतको रक्षाव लिये अपनी स्त्रीसे कहा -प्रिये, किसीको मारनेके लिये मुझे बुलानेको राज-नौकर आ रहे हैं, सो तुम उनसे कह देना कि घरमें वे नहीं हैं, दूसरे ग्राम गये हुए हैं। इस प्रकार वह चांडाल अपनी प्रियाको समझाकर घरके एक कोनेमें छुप रहा। जब राज- नौकर उसके घरपर आये और उनसे चाण्डालप्रियाने अपने स्वामी के बाहर चले जानेका समाचार कहा, तब नौकरोंने बड़े खेदके साथ कहा - हाय ! वह बड़ा अभागा है । देवने उसे धोका दिया। आज ही तो एक सेठ पुत्रके मारनेका मौका आया था और आज ही वह चल दिया ! यदि वह आज सेठ पुत्रको मारता तो उसे उसके सब वस्त्राभूषण प्राप्त होते । वस्त्राभूषणका नाम सुनते ही चाण्डालिनीके मुँह में पानी भर आया । वह अपने लोभके सामने अपने स्वामीका हानि-लाभ कुछ नहीं सोच सकी। उसने रोनेका ढोंग बनाकर और यह कहते हुए, कि हाय वे आज हो गाँवको चले गये, आती हई लक्ष्मीको उन्होंने पाँवसे ठुकरा दी, हाथ के इशारेसे घर के भीतर छुपे हुए अपने स्वामीको बता दिया । सच है - स्त्रीणां स्वभावतो माया कि पुनर्लोभकारणे । प्रज्वलन्नपि दुर्वह्निः किं वाते वाति दारुणे ॥ - ब्रह्म नेमिदत्त अर्थात् — स्त्रियाँ एक तो वैसे ही मायाविनी होती हैं, और फिर लोभादिका कारण मिल जाय तब तो उनकी मायाका कहना ही क्या ? जलती हुई अग्नि वैसे ही भयानक होती है और यदि ऊपरसे खूब हवा चल रही हो तब फिर उसकी भयानकताका क्या पूछना ? यह देख राज - नौकरोंने उसे घर से बाहर निकाला । निकलते ही निर्भय होकर उसने कहा- आज चतुर्दशी है और मुझे आज अहिंसाव्रत है, इसलिए मैं किसी तरह, चाहे मेरे प्राण ही क्यों न जायें कभी हिंसा नहीं करूँगा । यह सुन नौकर लोग उसे राजाके पास लिवा ले गये । वहाँ भी उसने वैसा ही कहा । ठीक है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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