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________________ पंचनमस्कार मंत्र - माहात्म्य कथा ११३ लिए खूब उत्कर्षका कारण हुआ। पहलेसे कई गुणी सम्पत्ति उनके पास बढ़ गई | सच है पुण्यवानोंके लिए कहीं भी कुछ कमी नहीं रहती । वहीं एक सागरदत्त सेठ रहता था । उसकी स्त्रीका नाम था सागरसेना | उसके एक एक थी । उसका नाम मनोरमा था । वह बहुत सुन्दरी थी । देवकन्यायें भी उसकी रूपमाधुरी को देखकर शर्मा जाती थी । उसका ब्याह सुदर्शनक साथ हुआ। दोनों दम्पत्ति सुख से रहने लगे । एक दिन वृषभदत्त समाधिगुप्त मुनिराज के दर्शन करनेके लिए गए । वहाँ उन्होंने मुनिराज द्वारा धर्मोपदेश सुना । उपदेश उन्हें बहुत रुचा और उसका प्रभाव भी उनपर खूब पड़ा । संसार की दशा देखकर उन्हें बहुत वैराग्य हुआ ये घरका कारोबार सुदर्शनके सुपुर्द कर समाधिगुप्त मुनिराज के पास दीक्षा लेकर तपस्वी बन गए । पिताके प्रव्रजित हो जानेपर सुदर्शनने भी खूब प्रतिष्ठा सम्पादन को । राजदरबार में भी उसकी पिताके जैसी ही पूछताछ होने लगी । वह सर्व साधारण में खूब प्रसिद्ध हो गया । सुदर्शन न केवल लौकिक कामोंमें ही प्रेम करता था; किन्तु वह उस समय एक बहुत धार्मिक पुरुष गिना जाता था। वह सदा जिनभगवान् की भक्ति में तत्पर रहता, श्रावकको व्रतों का श्रद्धाके साथ पालन करता, दान देता, पूजन स्वाध्याय करता । यह सब होनेपर भी ब्रह्मचर्य में वह बहुत दृढ़ था । एक दिन मगधाधीश्वर गजवाहनके साथ सुदर्शन वनविहारके लिये गया । राजाके साथ राजमहिषी भी थी । सुदर्शन सुन्दर तो था ही, सो उसे देखकर राजरानी कामके पाशमें बुरी तरह फँसी । उसने अपनी एक परिचारिकाको बुलाकर पूछा- क्यों तू जानती है कि महाराजके साथ आगन्तुक कौन हैं ? और ये कहाँ रहते हैं ? परिचारिकाने कहा — देवी, आप नहीं जानतीं, ये तो अपने प्रसिद्ध राजश्रेष्ठी सुदर्शन हैं। राजमहिषीने कहा- हाँ ! तब तो ये अपनी राजधानी के भूषण हैं । अरी, देख तो इनका रूप कितना सुन्दर, कितना मनको अपनी ओर खींचनेवाला है? मैंने तो आजतक ऐसा सुन्दर नररत्न नहीं देखा । मैं तो कहती हूँ, इनका रूप स्वर्गके देवोंसे भी कहीं बढ़कर है। तूने भी कभी ऐसा सुन्दर पुरुष देखा है । ic वह बोली - महारानीजी, इसमें कोई सन्देह नहीं कि इनके समान सुन्दर पुरुषरत्न तोन लोकमें भी नहीं मिलेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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