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________________ श्रेणिकराजाको कथा १०९ वर्षों की है । ठीक है सम्यग्दर्शनके प्रभावसे भव्यपुरुषोंको क्या प्राप्त नहीं होता ? इसके बाद श्रेणिकने श्रीचित्रगुप्त मनिराजके पास क्षयोपशमसम्यक्त्व प्राप्त किया और अन्त में भगवान् वर्धमान स्वामी के द्वारा शद्ध क्षायिकसम्यक्त्व, जो कि मोक्षका कारण है, प्राप्त कर पूज्य तीथंकर नाम प्रकृतिका बन्ध किया। श्रेणिक महाराज अब तीर्थकर होकर निर्वाण लाभ करेंगे। वे केवलज्ञानरूपी प्रदीप श्रीजिनभगवान् संसारमें सदाकाल विद्यमान रहें, जो इन्द्र, देव, विद्याधर, चक्रवर्ती द्वारा पूज्य हैं और जिनके पवित्र उपदेशके हृदयमें मनन और ग्रहण द्वारा मनुष्य निर्मल लक्ष्मीको प्राप्त करनेका पात्र होता है, मोक्षलाभ करता है । २०. पदमरथ राजाकी कथा इन्द्र, धरणेन्द्र, विद्याधर, राजा, महाराजाओं द्वारा पूज्य जिनभगवान्के चरणोंको नमस्कार कर मैं पद्मरथ राजाको कथा लिखता हूँ, जो प्रसिद्ध जिनभक्त हुआ है। मगध देशके अन्तर्गत एक मिथिला नामकी सुन्दर नगरी थी। उसके राजा थे पद्मरथ । वे बड़े बुद्धिमान् और राजनीतिके अच्छे जाननेवाले थे, उदार और परोपकारी थे । सुतरा वे खूब प्रसिद्ध थे। एक दिन पद्मरथ शिकारके लिये वनमें गये हुए थे। उन्हें एक खरगोश दीख पड़ा। उन्होंने उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया। खरगोश उनकी नजर बाहर होकर न जाने कहाँ अदृश्य हो गया। पद्मरथ भाग्यसे कालगुफा नामको एक गुहामें जा पहुंचे । वहाँ एक मुनिराज रहा करते थे। वे बड़े तपस्वी थे । उनका दिव्य देह तपके प्रभावसे अपूर्व तेज धारण कर रहा था । उनका नाम था सुधर्म । पद्मरथ रत्नत्रय विभूषित और परम शान्त मुनिराजके पवित्र दर्शनसे बहुत शान्त हुए । जैसे तपा हुआ लोहपिंड जलसे शान्त हो जाता है । वे उसी समय घोड़ेपरसे उतर पड़े और मुनिराजको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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