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________________ ब्रह्मदत्तको कथा १०५ कभी सुख हुआ है ? नहीं। मिथ्यात्वके समान संसारमें और कोई इतना निन्द्य नहीं है। उसीसे तो चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त सातवें नरक गया । इसलिये आत्महितके चाहनेवाले पुरुषोंको दूरसे ही मिथ्यात्व छोड़कर स्वर्ग-मोक्षकी प्राप्तिका कारण सम्यक्त्व ग्रहण करना उचित है। ___ संसारमें सच्चे देव अरहन्त भगवान् हैं, जो क्षुधा, तृषा, जन्म, मरण, रोग, शोक, चिन्ता, भय आदि दोषोंसे और धन-धान्य, दासो-दास, सोना, चाँदी आदि दस प्रकारके परिग्रहसे रहित हैं, जो इन्द्र चक्रवर्ती, देव, विद्याधरों द्वारा वन्द्य हैं, जिनके वचन जीव मात्रको सुख देनेवाले और भवसमुद्रसे तिरनेके लिये जहाज समान हैं, उन अर्हन्त भगवान्का आप पवित्र भावोंसे सदा ध्यान किया कोजिये कि जिससे वे आपके लिये कल्याण पथके प्रदर्शक हों। १६. श्रेणिकराजाकी कथा केवलज्ञानरूपी नेत्रके द्वारा समस्त संसारके पदार्थोके देखने जाननेवाले और जगत्पूज्य श्रीजिनभगवान्को नमस्कार कर मैं राजा श्रेणिककी कथा लिखता हूँ, जिसके पढ़नेसे सर्वसाधारणका हित हो। श्रेणिक मगध देशके अधीश्वर थे। मगधकी प्रधान राजधानी राजगह थी। श्रेणिक कई विषयोंके सिवा राजनीतिके बहत अच्छे विद्वान् थे । उनकी महारानी चेलनी बड़ी धर्मात्मा, जिनभगवान्की भक्त और सम्यग्दर्शनसे विभूषित थी। एक दिन श्रेणिकने उससे कहा-देखो, संसारमें वैष्णव धर्मको बहत प्रतिष्ठा है और वह जैसा सुख देनेवाला है वैसा और धर्म नहीं । इसलिये तुम्हें भी उसी धर्मका आश्रय स्वीकार करना उचित है। ___ सुनकर चेलनी देवो, जिसे कि जिनधर्मपर अगाध विश्वास था, बड़े विनयसे बोली-नाथ, अच्छी बात है, समय पाकर मैं इस विषयकी परीक्षा करूंगी। इसके कुछ दिनों बाद चेलनीने कुछ भागवत साधुओंका अपने यहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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