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________________ ८० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-खट शब्द हिन्दी टीका-खट शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं --१. अन्ध कूप (अन्धकार से व्याप्त कुवा) २. तृण (घास विशेष) ३. प्रहारान्तर (तलवार विशेष) ४. टङ्क (टाँकी, छेनी, घन वगैरह पत्थर को तोड़ने वाला) ५. कफ (जुकाम) ६. लाङ्गल (हल दण्ड, लागन) और ७. कत्तृण (खराब घास) इस तरह खट शब्द के सात अर्थ जानना चाहिये। मूल : खट्वा प्रेङ्खा कोलशिबी पर्यऋषूदिता स्त्रियाम्। . खड्गोऽसौ गण्डके बुद्ध-भेद-गण्डकशृङ्गयोः ॥ ४२८ ॥ हिन्दी टीका-खट्वा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रेङ्खा (दोला, डोली, झूला) २. कोलशिम्बी (छिमी) और ३. पर्यङ्क (पलंग) । खड्ग शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गण्डक (गेंडा) २. बुद्ध भेद (बुद्ध विशेष) और ३. गण्डक शृङ्ग (गेंडे का सींग)। मूल : खण्डनं भजने छेदे निराकरण-भेदयोः । खण्डपशुश्चूर्णलेप्यां भग्नदन्तगजे शिवे ॥ ४२६ ।। राही परशुरामे च खण्डामलकभेषजे । हिन्दी टोका-खण्डन शब्द नपुंसक माना जाता और उसके चार अर्थ होते हैं १. भजन (तोड़मा) २ छेद (छेदना) ३. निराकरण (पराजय. दूर करना) और ४. भेद (भेदन करना) इस तरह खण्डन शब्द के चार अर्थ हुए। खण्ड पशु शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. चूर्णलेपी (चूर्ण लेप) २. भग्नदन्त गज (दन्तहीन हाथी) ३. शिव (शंकर) ४. राहु, ५. परशुराम और ६. खण्डा. मलक भेषज (खण्ड आमला का चूर्ण) । मूल : खदिरो जिह्म शल्ये स्यात् चन्दिरे च पुरन्दरे ॥ ४३० ॥ ___ हिन्दी टीका-खदिर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जिह्म शल्य (टेढ़ा शल्य बाण) २. चन्दिर (चन्द्रमा) और ३. पुरन्दर (इन्द्र)। मूल : खद्योतो भास्करे व्योम-प्रकाशे ज्योतिरिङ्गणे । खनको भूमिवित्तज्ञ मूषिके सन्धितस्करे ॥ ४३१ ॥ हिन्दी टीका-खद्योत शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. भास्कर (सूर्य) २. व्योम प्रकाश (आकाश का प्रकाश विशेष) और ३. ज्योतिरिङ्गण (जुगनू)। खनक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भूमि वित्तज्ञ (भूगर्भ धनवेत्ता) २. मूषिक (चूहा उन्दर) और ३. सन्धि तस्कर (सैन्ध देने वाला चोर, दीवाल में सेंध देकर चुराना)। मूल : खरस्तु निष्ठुरे कंके काके गर्दभघर्मयोः । दैत्ये कण्टकिवृक्षेऽपि कुररे राक्षसान्तरे ॥ ४३२॥ हिन्दी टीका --खर शब्द पल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं—१. निष्ठुर (कठोर) २. कङ्क (सफेद चील) ३ काक. ४ गर्दभ, ५. धर्म (गर्मी उनाला) ६. दैत्य, ७. कण्टकि वृक्ष (रेबणी कटैया) ८. कुरर (कुकर पक्षी) और ६. राक्षसान्तर (राक्षस विशेष)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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