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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कौपीन शब्द | ७७ हिन्दी टोका-कौपीन शब्द नपंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. कल्मष (पाप) २. चीर (वस्त्र) ३. अकार्य (निषिद्ध कार्य, खराब कार्य) और ४. गुह्य प्रदेश (मूत्रेन्द्रिय)। कौमुदी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चन्द्रिका (चाँदनी) २. उत्सव और ३. कार्तिकोत्सव (कार्तिक महीने का उत्सव विशेष दीपावली-लक्ष्मी पूजा को जागरण, देवोत्थान वगैरह)। मूल : कार्तिकाऽऽश्विनमासीय पौर्णमास्यामपीष्यते । कौलीनं लोकवादे स्यादु जन्ये गुह्ये कुकर्मणि ॥ ४१२ ॥ हिन्दी टीका-कार्तिकाऽऽश्विनमासीय पौर्णमासी (कार्तिक आश्विन मास की पूर्णिमा को भी) कौमुदी कहते हैं । कोलीन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. लोकवाद (लोकापवाद) २. जन्य (वरपक्षीय, कन्यापक्षीय, इष्ट बन्धु, पालकी ढोने वाला या युद्ध या उत्पात विशेष) ३. गुह्य (गुप्तेन्द्रिय मूत्रेन्द्रिय आदि) और ४. कुकर्म (नीच अधर्म कर्म)। कौलेयके कुलीनत्वे युद्ध पश्वहिपक्षिणाम् । कौशिको नकुले घूके व्यालग्राहिणि गुग्गुलौ ॥ ४१३ ॥ हिन्दी टीका-कौलीन शब्द के और भी तीन अर्थ माने हैं-१. कौलेयक (कुत्ता) २. कुलीनत्व (कुलीनता, उच्च खानदान) और ३. पश्वहिपक्षिणाम्-युद्ध (पशु पक्षी और सर्प का परस्पर युद्ध) को भी कोलीन कहते हैं । कौशिक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. नकुल (न्यौला, सपनौर) २. घूक (उल्लू पक्षी) ३. व्यालग्राही (सपेरा) और ४. गुग्गुलि (गुग्गल) इस तरह कौशिक शब्द का चार अर्थ जानना। विश्वामित्रमुनौ शक्र मज्जा शृङ्गारयोरपि । अश्वकर्णतरौ कोशकार-कोशज्ञयो द्वयोः ॥ ४१४ ॥ हिन्दी टीका-कौशिक शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. विश्वामित्र मुनि (विश्वामित्र ऋषि) २. शक्र (इन्द्र) ३. मज्जा, और ४. शृंगार (शृङ्गार) को भी कौशिक कहते हैं। किन्तु १. अश्वकर्णतरु (सखुआ) २. कोशकार और ३. कोशज्ञ (कोश का जानकार) इन तीन अर्थों में कौशिक शब्द पुल्लिग और नपुंसक माना जाता है। कौस्तुभो विष्णुवक्षस्थमणि-मुद्राविशेषयोः । क्रकच: करपत्रे स्यात्-अस्त्री ग्रन्थिलपादपे ॥ ४१५ ॥ हिन्दी टीका-कौस्तुभ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णुवक्षस्थमणि (विष्णु भगवान की कौस्तुभमणि) और २. मुद्रा विशेष (सिक्का विशेष) को भी कौस्तुभ कहते हैं। क्रकच शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ १. करपत्र (आरा) और २. ग्रन्थिल पादप (अधिक गांठ वाला वृक्ष) अर्थ में पुल्लिग नपुंसक है। क्रतुमुन्यन्तरे यज्ञ - विश्वदेव - विशेषयोः । क्रन्दनं रुदिते योधसंरावाऽऽह्वानयोरपि ॥ ४१६ ॥ मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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