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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-कर्कोटक शब्द | ५१ मूल) २. तुम्बी (तुमरा) ३. कर्क (कर्क नाम की राशि) ४. कुलीरक (ककरा, कर्कोटक) ५. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ६. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) ७. क्षुद्र धात्री (आमला) और ८. भुजंगम (सर्प विशेष, करैत सांप)। कर्कश शब्द त्रिलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं उनमें-१. दुःस्पर्श (कठोर), २. कृपण (कङ्ग्स), और ३. साहसान्वित (साहसी)-इन तीन अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है और १. इक्षु (गन्ना-शेरडीकोशियार) २. कासमर्द (गुल्म विशेष-वेसवार-बघारने का मसाला) ३. खड्ग (तलवार) और ४. काम्पिल्य पादप (कबीला नाम का वृक्ष विशेष)। इन चार अर्थों में कर्कश शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। कर्कोटको नागराज इक्षौ बिल्बे सुगन्धके । कर्णः कुन्तीसुते श्रोत्रे सुवर्णालि महीरुहे ॥ २७१ ॥ कणिका कर्णभूषायां करिहस्तांगुलौ तथा। पूगच्छतांशे लेखिन्यामग्निमन्थे वराटको ।। २७२ ॥ हिन्दी टोका-कर्कोटक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं --१. नागराज (कृष्ण सर्प) २. इक्षु (गन्ना) ३. बिल्ब ४. सुगन्धक (लता विशेष)। कर्ण शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. कुन्तीसुत (कुन्ती का पुत्र-कर्ण) २. श्रोत्र (कान) ३. सुवर्ण (सोना) ४. अलि (भ्रमर-भौंरा) और ५. महोरुह (वृक्ष)। कर्णिका शब्द स्त्रीलिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. कर्णभूषा (एरंडझूम्मक वगरह) २. करिहस्तांगुलि (अंगुलित्रय संयोग विशेष - मैथुन का साधन विशेष) ३. पूगच्छतांश (सुपारी का अंश) ४. लेखिनी (कलम) ५. अग्निमन्थु (आग मन्थन का साधन विशेष) और ६. वराटक (कौड़ी) । इस तरह कर्कोटक शब्द के पांच और कणिका शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिये। मूल : कलशो मण्डने वाठे खड्गकोशे च विग्रहे। कला मूलधनोच्छाये शिल्पादावंशमात्रके ।। २७३ ॥ चन्द्रषोडशभागे स्यादातवे कपटे तरौ। कलिबिभीतके शूरे विवादेऽल्पयुगे रणे ॥ २७४ ।। हिन्दी टोका-कलश शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं. १. मण्डन (भूषण) २. वाट (रास्ता वगैरह) ३. खड्गकोश (म्यान तरकस) और ४. विग्रह (संग्राम वगैरह)। कला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. मूलधनोच्छ्राय (मूल धन की वृद्धि) २. शिल्पादि (हुनर-कौशल वगैरह) और ३. अंशमात्र (एक भाग) एवं ४. चन्द्रषोडश भाग (चन्द्र का सोलहवाँ भाग) ५. आर्तव ट (छल) और ७. तरु (वृक्ष)। कलि शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं१. बिभीतक (बहेड़ा) २. शूर (वीर) ३. विवाद (मतभेद वगैरह) ४. अल्पयुग (कलियुग) और ५. रण (संग्राम)। इस तरह कलश शब्द के चार, कला शब्द के सात और कलि शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिये। कलिका कोरके वीणामूले पदनिबन्धने । कलितं घृत आप्ते च विदिते गणिते त्रिषु ॥ २७५ ॥ कलिंगः पूतिकरजे धूम्याटेप्लक्षपादपे । शिरीषे कुटजे देशविशेषे भूम्नि पुंसि च ॥ २७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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