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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-ऋति शब्द | ३६ ४. उत्कण्ठा (उत्सुकता) ५. वेग और ६. प्रकाश । इस तरह मि शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये । ऊर्मिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी छह अर्थ होते हैं – १. मुद (आनन्द-हर्प) २. बीचि (तरंग लहर) ३. उत्कण्ठा (उत्सुकता) ४.भृङ्गनाद (भ्रमर का गुंजन) और ५. भंग (टेढ़ा मेढ़ा कपड़ा) और ६. अंगुलीयक (मुद्रिका अंगूठी) इस तरह ऊमिका शब्द के भी छह अर्थ जानना चाहिये। नपुंसक ऋत शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. उच्छशिल (एक-एक धान्य कणों को बीनकर जीवन निर्वाह करना) २. सत्य और ३. जल (पानी) किन्तु १ अर्च्य (पूज्य) और २. दीप्त इन दोनों अर्थों में ऋत शब्द त्रिलिंग माना जाता है इस तरह ऋत शब्द के कुल पाँच अर्थ जानना ।। मूल : ऋतिर्वम नि कल्याणे जुगुप्सा-स्पर्द्धयोर्गतौ । ऋतु: स्त्री-कुसुमे दीप्तौ मासे सुग्रीव कालयोः ।। २०३ ॥ ऋद्ध समृद्ध सम्पन्नधान्य - सिद्धान्तयोरपि । ऋद्धिः समृद्धौ पार्वत्यां सिद्धिनामौषधे स्त्रियाम् ॥ २०४॥ हिन्दी टोका-ऋति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १ वर्त्म (रास्ता) २. कल्याण (मंगल) ३. जुगुप्सा (निन्दा) ४. स्पर्धा (कम्पिटीशन) और ५. गति (गमन) इस तरह ऋति शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए । ऋत शब्द पल्लिग है और उसके भी पांच अर्थ होते हैं-१. स्त्रीकुसुम (मासिक धर्म) २. दीप्ति (प्रकाश) ३. मास (महीना) ४. सुग्रीव और ५. काल (वसन्तादि काल विशेष) इस तरह ऋतु शब्द के भी पाँच अर्थ जानना। ऋद्ध शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. समृद्ध (भरपूर-धनाढ्य) २. सम्पन्न धान्य (अत्यन्त धन दौलत) और ३. सिद्धान्त (निचोर वगैरह) इस प्रकार ऋद्ध शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए । ऋद्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. समृद्धि (धनाढ्यता) २. पार्वती (काली दुर्गा) और ३. सिद्धिनामौषध (सिद्धि नाम का औषध विशेष) इस तरह ऋद्धि शब्द के भी तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : ऋभुक्षः पुंसिर्कुलिशे सुरलोके पुरन्दरे । । ऋषभः पुंसि वृषभेकर्णरन्ध्य स्वरान्तरे । २०५ ॥ आदितीर्थङ्करे विष्णोरवतारान्तरेऽपि च।। वराहपुच्छ कुम्भीरपुच्छ्यौः पर्वतान्तरे ॥ २०६ ॥ हिन्दी टोका-ऋभुक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. कुलिश (वज्र) २. सूरलोक (स्वर्ग) और ३. पुरन्दर (इन्द्र) इस तरह ऋ मुक्ष शब्द के तीन अर्थ जानना। ऋषभ शब्द भी पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं -१. वृषभ (बैल वरद) २. कर्णरन्ध्र (कान का छेद) ३. स्वरान्तर (सा-रे-ग-म-प-ध-नि इन सात स्वरों में दूसरा स्वर विशेष) ४. आदितीर्थकर (ऋषभदेव भगवान) ५. विष्णु अवतारान्तर (ऋषभदेव नाम के विष्णु का अवतार) ६ वराहपुच्छ (शूकर का पूंछ) और ७. कुम्भीरपुच्छ (मकरग्राह का पूंछ) और ८. पर्वतान्तर (पहाड़) इस तरह ऋषभ शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ समझना चाहिये । मूल : श्रेष्ठोऽप्यौषधभेदे स्यात्तथैवेप्सितवर्षिणि । ऋषिः पुंसि मुनौ वेदे ज्ञान-संसारपारगे ॥ २०७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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