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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-आर शब्द | २१ प्रस्तावनायां शैघ्ये चाभ्यादानेऽपि पुमानयम् । आराधनं साधने स्यात्पचने प्राप्ति-तोषयोः ॥१०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग आर शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कुज (मंगल ग्रह) २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ३. पित्तल (पित्तल धातु) और ४. शनिग्रह (शनैश्चर) । आरम्म शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. उद्यम (उद्योग-व्यवसाय) २. दर्प (घमण्ड-अहंकार) ३. वध (मारना) ४. आकति (पहला यत्न अध्यवसाय) ५. प्रस्तावना (भूमिका) ६. शैध्य (जल्दी) और ७. अभ्यादान (प्रारम्भ) इस प्रकार सात हुए। आराधन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. साधन (सिद्धि का उपकरण) २. पचन (पकाना) ३. प्राप्ति और ४. तोष (खुशी)। मूल: आरोहस्तु गजारोहे वरस्त्रीश्रोणि दैर्घ्ययोः । परिमाणान्तरारोहनितम्बेषु समुच्छये ॥१०६।। आरोहणं समारोहे सोपानेऽङ कुरनिर्गमे । आर्तस्तु पीडितेऽसुस्थेऽप्यातिस्तु रोगपीडयोः ॥१०७॥ हिन्दी टीका-आरोह शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं- १. गजारोह (हाथी पर चढ़ना) २. वरस्त्री श्रोणि (युवती का नितम्ब) ३. दैर्घ्य (लम्बाई) ४. परिमाणान्तर (चौड़ाई) ५. आरोह (चढ़ना) ६. नितम्ब (चूतर) और ७. समुच्छ्रय (ऊँचाई) इस प्रकार सात हुए। नपुंसक आरोहण शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. समारोह (समारम्भ) २. सोपान (सीढ़ी पगथिया) और ३. अंकुरनिर्गम (अंकुर निकलना) । आर्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पीड़ित (सताया हुआ) २. असुस्थ (अस्वस्थ बीमार) । आति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. रोग (व्याधि-बीमारी) और २. पीड़ा (दुःख) इस प्रकार आर्त शब्द के तथा आति शब्द के भी दो-दो अर्थ हुए। मूल : धनुष्कोटावथाऽऽय॑स्तु संगते श्रेष्ठ पूज्ययोः । बुद्ध सत्कुलजाते च त्रिषु मित्रे प्रभो पुमान् ॥१०८।। आलानं बन्धने रज्जौ गजबन्धनदारुणि। आलिः पंक्तौ वयस्यायां सतौ च संततौ स्त्रियाम् ॥१०६।। हिन्दी टोका–धनुष्कोटि (प्रत्यंचा) को भी आति कहते हैं । आर्य शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ हैं – १. संगत (मैत्री) २. श्रेष्ठ (बड़ा) ३. पूज्य (आदरणीय) ४. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) किन्तु सत्कुलजात (उत्तम कुलोत्पन्न) अर्थ में आर्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष-स्त्री साधारण ही कुलीन हो सकता है इसलिए कुलीना स्त्री के लिये आर्या और कुलीन पुरुष के लिये 'आर्यः' एवं कुलीन आचरण के लिये 'आर्यम्' आचरणम् ऐसे प्रयोग हो सकते हैं अतः सत्कुलजात अर्थ में आर्य शब्द त्रिलिंग माना गया है। एवं मित्र अर्थ में भी आर्य शब्द त्रिलिग माना जाता है और प्रभु (राजः) अर्थ में पुल्लिग ही माना गया है। आलान नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. बन्धन (बांधना) २ रज्जु (रस्सी डोरी) ३. गजबन्धन (हाथी का बन्धन बेड़ी) और ४. दारु (लकड़ी)। आलि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. पक्ति (लाइन) २. वयस्या (सखी सहेली) ३. सेतु (बाँध) और ४. संतति (सन्तान पुत्रादि)। इस प्रकार आलान और आलि के चार-चार अर्थ हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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