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________________ ३७६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - सिंही शब्द (राङा) और ३. रीति (गौड़ीया वगैरह रीति) किन्तु ४ देशान्तर (देश विशेष सिंहल देश) अर्थ में सिंहल शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। सिंघाण शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. नासिकामल (नकटी) और २. लौहमल (जंग, किट्ट) और ३: काचभाजन (काच का बर्तन) को भी सिंघाण कहते हैं। सिंहास्य शब्द १. वासक (अडूसा) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. सिंहतुल्य मुख (सिंह सदृश मुख वाला) अर्थ में त्रिलिग माना गया है इस प्रकार सिंहास्य शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये। सिंही राहु जनन्यां स्यात् मुद्गपर्यों च वासके। वार्ताकी-बृहती - सिंहपत्नीषु परिकीर्तिता ॥२१८६।। सिकता-बालुकायुक्तभूमि-बालुकयोः स्त्रियाम् । सिक्त नील्यां मधूच्छिष्टे त्रिलिंगः कृतसेचने ॥२१८७॥ हिन्दो टीका-सिंही शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. राहुजननी (राग्रह की माता) २. मुदगपर्णी (वनमंग) और ३. वासक (अडसा) ४. वार्ताकी (बैंगन भण्टा रिंगना) ५. बहती (वनकटैया रिंगनो) और ६. सिंहपत्नो (सिंहिन)। सिकता शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. बालुकायुक्तभूमि (रेतीली भूमि) और २. बालुका (रेती)। नपुंसक सिक्त शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. नीली (गड़ी नील) और २. मधूच्छिष्ट । शहद से निकाला हुआ मोम) किन्तु ३. कृतसेचन (सेचन किया गया) अर्थ में सिक्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है । मूल : ना ग्रासेऽथ पटे जीर्णपटे च सिचयः स्मृतः । चन्दने मूलके रौप्ये सितं क्लीवं प्रकीर्तितम ॥२१८८।। शुक्राचार्ये शुक्लवर्णे विशिखे च पुमान् मतः। त्रिष ज्ञाते निबद्धे च समाप्ते सैत्यवत्यपि ।।२१८६॥ हिन्दी टीका --- सिचय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ग्रास (कवल, कोर) और २. पट (कपड़ा) तथा ३. जीर्णपट (पुराना कपड़ा)। नपुंसक सित शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. चन्दन २. मूलक (मूली) और ३. रौप्य (रूपा) किन्तु पुल्लिग सित शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं.---१. शुक्राचार्य, २. शुक्लवर्ण (सफेद) और ३. विशिख (बाण) किन्तु १. ज्ञात, २. निबद्ध (रचित) और ३. समाप्त तथा ४. सैत्यवत् (शीतल या सैत्ययुक्त) इन चारों अर्थों में सित शब्द त्रिलिंग माना जाता है, इस प्रकार सिचय शब्द के तीन और सित शब्द के कुल मिलाकर दस अर्थ जानना चाहिये । शुक्लपक्षे बके हंसे सितपक्षः उदाहृतः । तगरे सितपुष्पः स्यात् स्वेतरोहित-काशयोः ।।२१६०।। सुग्रीवः शकरे शक्र तीर्थकृज्जनकेऽसरे । राजहंसे ऽस्त्रभेदेऽपि विशेषे नाग-शैलयोः ॥२१६१॥ हिन्दो टोका-सितपक्ष के तीन अर्थ होते हैं-१. शुक्लपक्ष. २. वक और ३. हंस । सितपुष्प शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं.-१. तगर, २. श्वेतरोहित (सफेद हरिण) और ३. काश (मुंज दर्भ वगैरह)। सुग्रीव शब्द के आठ अर्थ होते हैं-१. शंकर (भगवान् शंकर) २. शक (इन्द्र) ३. तीर्थकृज्जनक (भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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