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________________ ३४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - शून्य शब्द हिन्दी टीका - नपुंसक शून्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. नभस् (आकाश) और २ बिन्दु । पुल्लिंग शून्य शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं- १. निर्जन ( एकान्त) और २. रिक्त (खाली) । पुल्लिंग शून्यमध्य शब्द का अर्थ - १ नल (नल राजा होता है क्योकि उसकी कमर अत्यन्त पतली थी ) किन्तु २. शून्यगर्भवस्तु (गर्भ शून्य पदार्थ) अर्थ में शून्य मध्य शब्द त्रिलिंग माना गया है । शून्यवादी नकारान्त पुल्लिंग शब्द का अर्थ - १. सौगत (बौद्ध) होता है और २ नास्तिक (वेद को नहीं मानने वाला) अर्थ ' भी शून्यवादी शब्द का प्रयोग किया जाता है । स्त्रीलिंग शून्या शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. महाकण्टकिनी (कटाढ़ नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष जिसमें अत्यन्त नुकीले काँटे होते हैं) और २. नालिका (नली) को भी शून्या कहते हैं और ३. बन्ध्या (बाँझ स्त्री) को भी शून्या कहा जाता है । मूल : शूरः सूर्ये भटें सिंहे श्रीकृष्णस्य पितामहे । शूकरे लकुचे साले मसूरे चित्रकद्रुमे ॥२०००|| शूर्पेस्त्रियां द्रोणयुग्ममाने प्रस्फोटनेऽपि च । शूर्पी शूर्पणखायां स्यात् लघु शूर्पेऽप्यसौ मता ॥ २००१ ॥ हिन्दी टीका - शूर शब्द के नौ अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. भट, ३. सिंह, ४. श्रीकृष्ण-पितामह ( भगवान कृष्ण के दादा) और ५. शूकर ६. लकुच (लीची) ७. साल (साँखु ) ८. मसूर और चित्रकद्रम (चीता नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) । पुल्लिंग तथा नपुंसक शुत्र शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. द्रोण युग्ममान (आधा मन) और २. प्रस्फोटन (सूप) । स्त्रीलिंग शूर्पी शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. शूर्पणखायां ( शूर्पणखा नाम की राक्षसी) और २. लघु शूर्प (छोटा सूप) को भी शूर्पी कहते हैं । मूल : शूलावारस्त्रियां दुष्टवधार्थे कीलकेऽप्यसौ । शूलिकः शशके पुंसि शूलयुक्त े त्वसौ त्रिषु ||२००२॥ श्रृङ्गन्तु शिखरे चिह्न वाद्यभेद-विषाणयोः । जो विशिखे पुंसि क्लीवन्तु अगरुणि स्मृतम् ।।२००३॥ हिन्दी टीका - शूला शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. वारस्त्री (वेश्या) २. दुष्टवधार्थ कीलक (दुष्ट के वध के लिये शूली ) । १. शशक ( खरगोश ) अर्थ में शूलिक शब्द पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २. शूलयुक्त अर्थ में शूलिक शब्द त्रिलिंग माना जाता है । श्रृङ्ग शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. शिखर (चोटी) २. चिह्न ३ वाद्यभेद (वाद्यविशेष) और ४. विषाण (सींग ) । श्रृंगज शब्द १. विशिख (बाण) अर्थ पुल्लिंग है किन्तु २. अगुरु (अगुरु तगर ) अर्थ में श्रृंगज शब्द नपुंसक माना जाता है । मूल : Jain Education International श्रृंगाटकं खाद्यभेदे जलसूच्यां चतुष्पथे । शृङ्गारमार्दके चूर्णे कालागुरु - लवंगयोः ॥२००४॥ सिन्दूरेऽसौ तु पुल्लिंगः सुरते गजभूषणे । तथा नाट्यरसेऽप्युक्तः शृंगारी गज - पूगयोः || २००५ ।। हन्दी टीका - श्रृङ्गाटक शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. खाद्यभेद (खाद्य विशेष सिंहरहार ) २. जल सूची और ३. चतुष्पथ ( चौराहा ) । नपुंसक श्रृङ्गार शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. आर्द्रक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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