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________________ ३४४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - शुचि शब्द हस्तिहस्तेऽम्बु हस्तियां मद्यपानगृहेऽपि च । मरिचे सैन्धवे शुद्धे शुद्धस्तु त्रिषु केवले ।।१६८७॥ हिन्दी टोका –त्रिलिंग शुचि शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. शुद्ध २. अनुपहत (ताजा) और ३. शुक्ल वर्ण युक्त । शुण्डा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. नलिनी (कमलिनी) २. कुट्टनी ( खराब चाल चलन की स्त्री) ३. मंदिरा (शराब) और ४. वारयोषित् (वेश्या) तथा ५ हस्ति हस्त (हाथो का सूड़ और ६. अम्बुहस्तिनी और ७. मद्यपान गृह ( शराब खाना ) । नपुंसक शुद्ध शब्द का अर्थ - १. मरीच और २. सैन्धव (घोड़ा या नमक ) होता है किन्तु पुल्लिंग शुद्ध शब्द का अर्थ - १. केवल (विशुद्ध या अकेला ) होता है । मूल : मरिचे सैन्धवे शुद्धं शुद्धस्तु त्रिषु केवले । शुक्ले पवित्रे निर्दोषे रागे रागान्तरायुते || १६८८॥ शुन्यं शुनी समूहे स्याद् रिक्तऽसौ वाच्यवत् स्मृतम् । शुभंश्वः श्रेयसे पदुमकाष्ठे योगान्तरेतु ना ॥१६८६॥ हिन्दी टीका - नपुंसक शुद्ध शब्द के अर्थ माने गये हैं - १. मरिच (कालीमरी) और २. सैन्धव (नमक या घोड़ा ) किन्तु त्रिलिंग शुद्ध शब्द के छह अर्थ होते हैं - ३. केवल ( अकेला ) ४. शुक्ल (सफेद) ५. पवित्र, ६. निर्दोष (दोष रहित) ७. राग और ८. रागान्तरायुत (अन्यराग से असम्बद्ध) । नपुंसक शुन्य शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) समझा जाता है । नपुंसक शुभ शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. श्वः श्रेयस् (कल्याण) और २. पद्मकाष्ठ (काष्ठ विशेष ) किन्तु ३. योगान्तर (योग विशेष) अर्थ में शुभ शब्द पुल्लिंग माना जाता है । मूल : Jain Education International त्रिष्वसौ व्योमसंचारिपुरे कल्याणशालिनि । शुभा देवसभा - शोभा - वाञ्छा - गोरोचनासु च ॥ १६६०॥ शमीद्रुमे श्वेत दूर्वा - वंशरोचनयोरपि । प्रियंगो पार्वती सख्यां मांगलिक्यामपि स्मृता ॥ १६६१ ॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग शुभ शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. व्योमसंचारिपुर (आकाश में संचरण शील नगर गन्धर्व नगर) और २. कल्याणशाली (कल्याण से युक्त) को भी शुभ कहते हैं । स्त्रीलिंग शुभा शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. देवसभा ( देवों की सभा ) २. शोभा, ३. वाञ्छा (अभिलाषा) और ४. गोरोचना (गोलोचन) को भी शुभा कहते हैं । शुभा शब्द के और भी छह अर्थ माने गये हैं- १. शमीद्रम ( शमी का वृक्ष) २. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) और ३. वशरोवना (वंशलोचन ) तथा ४. प्रियंगु ( प्रियंगु नाम की लता विशेष) और ५. पार्वतीसखी (शुभा नाम की पार्वती को सहेली ) और ६. मांगलिकी (कल्याणमयी) i मूल : शुभमभ्रक - कासीस- रोप्य - गड्लवणेषु च । शुभ्रोना चन्दने शुक्लवर्णेऽसौ वाच्यवत् सिते ।।१६६२॥ शुल्कोऽस्त्रियां वरादर्थग्रह - घट्टादिदेययोः । शुल्वं तामे जला सन्ने रज्ज्वा वध्र्वरकर्मणि ॥ १६६३ || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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