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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--शस्त्री शब्द | ३३१ मूल: शस्त्री स्त्री छुरिकायां स्यात् नान्तस्त्रिष्वस्त्रधारिणि । शस्यं क्षेत्रस्थ धान्यादौ वृक्षादीनां फले तथा ।।१६०८॥ शाको द्वीपान्तरे शक्तौ शरपत्र शिरीषयोः । नृपान्तरे शकाब्देऽसौं पत्रपुष्पादिकेऽस्त्रियाम् ॥१६०६।। हिन्दी टोका-शस्त्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. छुरिका छुरी या वसूला बगैरह) होता है किन्तु त्रिलिंग नकारान्त श स्त्रिन शब्द का अर्थ-२. अस्त्रधारी (अस्त्र को धारण करने वाला) होता है । शस्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. क्षेत्रस्थ धान्यादि (खेत में लगी हुई हरी फसल) और २. वृक्षादि फल (वृक्ष वगैरह का फल) को भी शस्य कहते हैं। पुल्लिग शाक शब्द के छह अर्थ माने गये हैं१. द्वीपान्तर (द्वीप विशेष-शाकद्वीप) २. शक्ति (सामर्थ्य) ३. शरपत्र (शरकण्डा-नरकठि) और ४. शिरीष (शिरीष नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ५. नृपान्तर (नृप विशेष-शाक नाम का राजा) तथा ६. शकाब्द (शक वर्ष) किन्तु ७. पत्रपुष्पादि (पत्ता फूल वगैरह) अर्थ में शाक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है, इस प्रकार कुल मिलाकर शाक शब्द के सात अर्थ समझने चाहिये । शाखश्छित्तौ कार्तिकेये शाखा पक्षान्तरेऽन्तिके । वेदभागेग्रन्थभेदे पादपाङ्ग विधुन्तुदे ॥१६१०॥ शाखी वेदे राजभेदे तुरुष्काख्यजने तरौ। निकषे करपत्रे च शाणो माषचतुष्टये ॥१६११॥ हिन्दी टीका-शाख शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. छिति (छेदन २. कार्तिकेय । शाखा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं—१. पक्षान्तर (दूसरा पक्ष वगैरह) २. अन्तिक (पास निकट) ३. वेद भाग (वेद का भाग) और ४. ग्रन्थभेद (ग्रन्थ विशेष) तथा ५. पादपाल (वृक्ष का अङ्ग एक देश डाल) और ६. विधुन्तुद (राहु) । शाखो शब्द नकारान्त पुल्लिग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. वेद (ऋग्वेद वगैरह) २. राजभेद (राज विशेष) ३. तुरुष्काख्यजन (तुरुक देशवासी) और ४. तरु (वृक्ष)। शाण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. निकष (कसौटी पत्थर) २. करपत्र (आरा, आरी वगैरह अस्त्र विशेष) और ३. माषचतुष्टय (चार माशा)। मूल : शाण्डिल्यो मुनिभेदे स्यात् बिल्ववृक्षेऽनलान्तरे । शाणी स्त्री छिद्रवस्त्रस्यादिङ्ग प्रावरणान्तरे ॥१६१२।। शातः स्यात् पुंसि धुस्तुरे सुखे तु स्यान्नपुंसकम् । दुर्बले निशिते शर्म शालिनि त्रिषु कीर्तितः ॥१६१३।। हिन्दी टोका-शाण्डिल्य शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मुनिभेद (मुनि विशेष-शाण्डिल्य मुनि) २. बिल्व वृक्ष (बेल का वृक्ष) और ३. अनलान्तर (अनल विशेष अग्नि विशेष)। शाणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. छिद्रवस्त्र (छेदयुक्त कपड़ा, फटा कपड़ा) २. इङ्ग (त्रस-चलने फिरने वाले मनुष्य पशु पक्षी कीट पतङ्ग वगैरह) और ३. प्रावरणान्तर (प्रावरण विशेष चादर-दुपट्टा वगैरह) । पुल्लिग शात शब्द का अर्थ-१. धुस्तूर (धतूर) होता है किन्तु २. सुख अर्थ में शात शब्द नपुंसक माना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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