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________________ ३१८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-व्यास शब्द विरोधाचरणे नृत्यप्रभेदे प्रतिरोधने । समाधिपारणे स्वैरवृत्तौ व्युत्थानमीरितम् ॥१८२८॥ हिन्दी टोका- व्यास शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. गोलस्य मध्य रेखा (भूगोल खगोल, पृथिवी की मध्य रेखा) और १. विस्तार । व्यासक्त शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं--१. संसक्त (संलग्न) और २. विशेषासंगवत् (विशिष्ट आसंग वाला)। व्युत्थान शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. विरोधाचरण (विरुद्धाचरण) २. नृत्यप्रभेद (नृत्य विशेष) ३. प्रतिरोधन (प्रतिरोध करना) ४. समाधिपारण (समाधि को पूरा करना) ५. स्वैरवृत्ति (यथेष्ट आचरण) को भी व्युत्थान कहते हैं। मूल : शक्तिज्ञाने च संस्कारे व्युत्पत्तिः स्त्री प्रकीर्तिता। व्युदासो ना व्यवच्छेदे परित्याग-निवासयोः ॥१८२६॥ व्युष्टं प्रभाते दिवसे फले क्लीवं त्रिषुत्वसौ । मतः पर्युषिते दग्धे व्युष्टिः स्त्री स्यात्फले स्तुतौ ॥१८३०॥ हिन्दो टोका-व्युत्पत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शक्तिज्ञान (अभिधा नाम की शक्ति का ज्ञान) २. संस्कार । व्युदास शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -१. व्यवच्छेद (दूर करना) और २. परित्याग (त्याग करना) और ३. निवास (निवास स्थान)। नपंसक व्यष्ट शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. प्रभात (प्रातःकाल) २. दिवस (दिन) और ३. फल, किन्तु त्रिलिंग व्युष्ट शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. पर्युषित (वसिया) और २. दग्ध (जला हुआ)। व्युष्टि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. फल, २. स्तुति को भी व्युष्टि कहते हैं। ऋद्धौ व्यूढस्तु विन्यस्ते पृथुले संहते त्रिषु । व्यूहो ना सैन्य विन्यासे तर्के देहे कृतौ चये ॥१८३१॥ व्योम नीरेऽभ्रकेऽभ्र च भास्करस्यार्चनाश्रये । व्योमचारी खगे देवे द्विजाते चिरजीविनि ॥१८३२।। हिन्दी टोका--व्यूढ शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. ऋद्धि (समद्धि) २. विन्यस्त (स्थापित) ३. पृथुल (विशाल) और ४. संहत (एकत्रित) । व्यूह शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं -१. सैन्यविन्यास (सेना को व्यूह रचना) २. तक, ३. देह ४. कृति और ५. (समूह)। व्योमन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. नीर (जल) २. अभ्रक (अबरख या मेथ) ३. अभ्र (आकाश) और ४. भास्करस्यार्चनाश्रय (सूर्य का अर्चनाश्रय) । व्योमचारिन् शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. खग (पक्षी) २. देव ३. द्विजात (चन्द्र) और ४. चिरजीवी को भी व्योमचारी कहते हैं। व्योमचारी पुमान् देवे विहंगे चिरजीविनि । व्रजो ना निवहे मार्गे गोष्ठ-देशप्रभेदयोः ॥१८३३।। व्रज्या स्त्री गमने रङ्ग-विजिगीषु प्रयाणयोः । वर्गे पर्यटने ज्ञया व्रणोऽस्त्री स्यात् क्षतेऽरुषि ॥१८३४॥ मूल : मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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