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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अलीक शब्द | १३ मूल : अलीकमप्रिये स्वर्गे ललाटे वितथेऽपि च। अवग्रहोवृष्टिरोधे स्वभावे प्रतिबन्धके ॥६० ॥ शापे ज्ञान विशेषे च गजता हस्ति - भालयोः । अवटोगतखिलयो: कूपे कुहकजीविनि ॥ ६१ ॥ हिन्दी टोका-अलोक शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अप्रिय (कटु खराब) २. स्वर्ग, ३. ललाट (भाल मस्तक) ४. वितथ (मिथ्या झूठ) भी अलीक कहा जाता। अवग्रह शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -- . वृष्टिरोध (वर्षा न होना) २. स्वभाव, ३. प्रतिबन्धक (रोकने वाला ४. शाप (अभिशाप देना) ५. ज्ञानविशेष । गजता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ हैं - १. हस्ति (हाथी) और २. भाल (ललाट) को भी गजता कहते हैं । अवट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. गर्त (खड्ढा) २. खिल (खाली शून्य) ३. कूप (कुआँ) ४. कुहकजीवी (इन्द्रजाल विद्या से जीविका चलाने वाला)। मूल : अवनं रक्षणे शक्तौ कामेऽवगमने वधे । प्रीणने शोभने तृप्तौ स्पृहायां श्रवणे गतौ ॥६२॥ सत्तायां करणे बुद्धौ श्लेषे प्राप्तौ प्रवेशने । याचने ग्रहणे भागे स्वाम्यर्थे च नपुंसकम् ॥६३॥ हिन्दी टीका-अवन शब्द नपुंसक है और उसके २१ अर्थ होते हैं-१. रक्षण (रक्षा करना) २. शक्ति (ताकत सामर्थ्य) ३. काम (कन्दर्प-इच्छा) ४. अवगमन (समझना और समझाना) ५. वध (हिंसा करना) ६. श्रीगन (तृप्त करना खुश करना) ७. शोभन (सुन्दर, अच्छा) ८. तृप्ति (इच्छा को पूर्ति) ६. स्पृहा (अभि लाषा) १०. श्रवण (सुनना) ११. गति (जाना) १२. सत्ता (अस्तित्व) १३. करण (मन-इन्द्रिय वगैरह) १४. बुद्धि (ज्ञान) १५. श्लेष (आलिंगन-जोड़ना) १६. प्राप्ति, १७. प्रवेशन (प्रवेश करना कराना) १८. याचन (मांगना) १६. ग्रहण (लेना) २०. भाग. (हिस्सा-एक देश) २१. स्वाम्यर्थ (स्वामी के लिए) इस प्रकार २१ अर्थ अवन शब्द के होते हैं । “अव, रक्षण-कान्ति-गति" इस अवधातु से ल्युट् प्रत्यय करके अवन शब्द बनता है, तदनुसार उक्त सभी अर्थ हो सकते हैं। अवलेपस्त्वहंकारे संगभूषणलेपने । अवश्यायो हिमे गर्वे कुज्झतौ च प्रयुज्यते ॥६४॥ अथोऽवष्टम्भ आरम्भे सुवर्णे स्तम्भ उच्यते । अवष्टब्धोऽन्तिके बद्ध आक्रान्ते रुद्ध आश्रिते ॥६५॥ हिन्दी टीका-अवलेप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अहंकार (घमण्ड-दर्पमिथ्याभिमान) २. संग (संगति) ३. भूषण (अलंकरण) ४. लेपन (चन्दन वगैरह का लेप करना) और अवश्याय शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. हिम (पाला बर्फ) २. गर्व (घमण्ड) ३. कुज्झटिका (झारी) और अवष्टम्भ शब्द पुल्लिग ही है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं । १. आरम्भ (शुरू करना) २. सुवर्ण (सोना) ३. स्तम्भ (खम्भा) और अवष्टब्ध शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. अन्तिक (निकट) २. बद्ध (बान्धा हुआ) ३. आक्रान्त (दवाया हुआ) ४. रुद्ध (रोका हुआ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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