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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विकल्प शब्द | २९१ विकारो विकृतौ रोगे विकाशो रहसि स्फुटे। विकृतं त्रिषु बीभत्से ऽसंस्कृते रोगसंयुते ॥१६६५॥ हिन्दी टोका-विकल्प शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. भ्रान्ति (भ्रम) और २. विविधकल्प (अनेक कल्प-पक्ष नाना संकल्प विकल्प)। विकषा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. मांसरोहिणी और २. मञ्जिष्ठा (मजीठा)। विकार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. विकृति (विकार) और २. रोग (व्याधि)। विकाश शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं--१. रहस् (एकान्त स्थान) और २. स्फुट (स्पष्ट-प्रकट) । विकृत शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. बीभत्स (घृणित) २. असंस्कृत (संस्काररहित) और ३. रोगसंयुत (रोगयुक्त-रोगी) इस प्रकार विकृत शब्द के तीन अर्थ मानना। डिम्भे विकारे मद्यादौ रोगे च विकृती स्त्रियाम् । विक्रमः केशवे शक्तौ चरण-क्रान्तिमात्रयोः ॥१६६६॥ विक्रमादित्यनृपतौ शौर्यातिशय - वर्षयोः । विक्लिन्नो जरसा जीर्ण शीर्ण आद्रे त्रिलिंगभाक् ॥१६६७॥ हिन्दी टीका-विकृती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. डिम्भ (बच्चा, शिशु) २. विकार, ३. मद्यादि (मद्य-शराब वगैरह) और ४. रोग (व्याधि)। विक्रम शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. केशव (वामन भगबान) २. शक्ति (सामर्थ्य) ३. चरण (पाद) ४. क्रान्तिमात्र (क्रमण-गमन करना) ५. विक्रमादित्यनृपति (विक्रमादित्य राजा) ६. शौर्यातिशय (अत्यन्त पराक्रम) और ७. वर्ष (विक्रम नाम का संवत)। विक्लिन्न शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. जरसाजीर्ण (बुढ़ापा के कारण जीर्ण वृद्ध) २. शीर्ण (विशीर्ण) और ३. आर्द्र (गीला) इस प्रकार विक्लिन्न शब्द के तीन अर्थ मानना। विग्रहः पुंसि विस्तारे शरीर-प्रविभागयोः । समासवाक्ये युद्धे तु विग्रहोऽस्त्री मतः सताम् ॥१६६८।। मल्लीभेदे मदनकद्रुमे विचकिलः पुमान् । विच्छित्तिः स्त्री हारभेदे गेहावधि-विनाशयोः ॥१६६६॥ हिन्दो टोका-पुल्लिग विग्रह शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. विस्तार, २. शरीर, ३. प्रविभाग (विशेष विभाग) और ४. समासवाक्य (संक्षिप्त वाक्य) किन्तु ५. युद्ध (संग्राम) अर्थ में विग्रह शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है। विचकिल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मल्लीभेद (छोटी बेला) और २. मदनकद्र म (धत्तूर वगैरह)। विच्छित्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. हारभेद (हार विशेष) २. गेहावधि (गृह पर्यन्त) और ३. विनाश, इस प्रकार विच्छित्ति शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : अंगरागेऽङ्गहारे च विच्छदेऽपि प्रकीर्तिता। विच्छिन्नस्त्रिषु वक्र स्यात् समालब्ध-विभक्तयोः ॥१६७०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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