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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वागर शब्द | २८३ वाङमती मिथिनद्यां वाङ न्यासयुतयोषिति ।। वाचकः कथके शब्दे वाचनं तूक्ति-पाठयोः ॥१६१७।। हिन्दी टीका -वागर शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. वारक (हटाने वाला) २. शाण, ३. निर्णय, ४ वाडव (घोड़ा) ५. वृक (भेड़िया) ६. वावदूक (अत्यन्त अधिक बोलने वाला) ७. त्यक्तभय (भयरहित, निर्भीक, निडर) ८. मुमुक्षु (मोक्ष चाहने वाला, मुक्तिपथारूढ़) और ६. पण्डित (विद्वान) । वाङमतो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मिथिला नदी (वाङमती नाम की नदी, जो कि मिथिला देश में बहती है) और २. वाङ न्यासयुतयोषित् (बोलने में अन्त चतुर स्त्री)। वाचक शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. कथक (कथा कहने वाला) और २. शब्द । वाचन शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं- १. उक्ति (कथन) और २. पाठ। इस प्रकार वाचन शब्द के दो अर्थ समझने चाहिए। मूल: कुत्सिते वचनाहे च स्याद् वाच्यं शक्य-हीनयोः । अन्ने यज्ञ घृते तोये वाजं वाजस्तु निस्वने ॥१६१८॥ शरपक्षे मुनौ वेग-पक्षयो र्गमनेऽपि च । वाजीपुमान् हये बाणे वासके च विहंगमे ॥१६१६।। हिन्दी टोका-वाच्य शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कुत्सित (निन्दित) २. वचनाह (बोलने योग्य) ३. शक्य (अर्थ) तथा ४. हीन । नपुंसक वाज शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. अन्न, २. यज्ञ, ३. घृत और ४. तोय (पानी, जल) किन्तु पुल्लिग वाज शब्द का अर्थ-१. निस्वन (आवाज) होता है । पुल्लिग वाज शब्द के और भी पाँच अर्थ माने गये हैं-१ शरपक्ष (बाण का पुख) २. मुनि (महर्षि) ३. वेग (त्वरा, जल्दबाजी) ४. पक्ष (पाँख) और ५. गमन (चलना)। नकारान्त पुल्लिग वाजिन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१ हय (घोड़ा) २. बाण (शर, तीर) ३. वासक (अडूसा) और ४. विहंगम (पक्षी, बाज नाम का पक्षी विशेष)। मूल : वाटो मार्गे वृतिस्थाने गमने धारणेऽपि च । वाटी वाट्यालके कुट्यां तथा वास्तुनि च स्त्रियाम् ॥१६२०॥ त्रिषु बाढं दृढेऽत्यन्ते स्वीकारे त्वेतदव्ययम् । बाणोऽग्नौ गोस्तने दैत्यभेदे कविवरे शरे ॥१६२१।। हिन्दी टीका-वाट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. मार्ग (रास्ता) २. वृतिस्थान (वाड़ी घिरा हुआ स्थान) ३. गमन और ४. धारण (धारण करना)। वाटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं--१. वाट्यालक (बरियार) २. कुटी (झोंपड़ी) और ३. वास्तु (निवास स्थान)। बाढ़ शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. दृढ़ (मजबूत) और २. अत्यन्त किन्तु ३. स्वीकार (स्वीकार करना) अर्थ में बाढ़ शब्द अव्यय माना जाता है । बाण शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. अग्नि २. गोस्तन (एक लड़ी का हार विशेष) ३. दैत्यभेद (दैत्य विशेष बाणासुर नाम का दैत्य) ४. कविवर (बाण कवि, जिन्होंने कादम्बरो और हर्षचरित नाम के दो प्रसिद्ध महाकाव्य लिखे हैं) और ५. शर (बाण) को भी बाण शब्द से व्यवहार किया जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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