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________________ मूल : २८० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वर्वर शब्द ३. केश, ४. देश विशेष, ५. चक्रल (मोथा घास) ६ पञ्जिका (पद्धति) और ७. गन्धपत्रतरु (गन्धपत्र नाम का वृक्ष विशेष) को भी वर्वर कहते हैं। क्लीवं स्याद् वर्वरं बोले हिंगूले पीतचन्दने । पुष्पभेदे शाकभेदे वर्वरा मक्षिकान्तरे ॥१५६६।। वर्ष संवत्सरे वृष्टौं जम्बूद्वीपे च वादले । पुनर्नवायां भेक्यां स्त्रीवर्षाभूस्तद्भवे त्रिषु ॥१६००॥ हिन्दी टोका-नपुंसक वर्वर शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. बोल (गन्ध रस-बोर) २. हिंगूल (हिंग) ३. पीत चन्दन (गोपी चन्दन) ४. पुष्पभेद (फूल विशेष) और ५ शाकभेद (शाक विशेष)। स्त्रीलिंग वर्वरा शब्द का अर्थ - १. मक्षिकान्तर (मक्षिका विशेष) होता है । नपुंसक वर्ष शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. संवत्सर, २. वृष्टि (वर्षा) ३. जम्बूद्वीप (एशिया) और ४. वादल (बादल) किन्तु वर्षाभू शब्द - १. पुनर्नवा (गजपुरैन) और २. भेकी (एडकी-वेङ की स्त्री जाति) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है और ३. तद्भव (बर्षा में उत्पन्न होने वाला) अर्थ में वर्षाभू शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : वलयो गलरोगे स्याद् वेला-कङ्कणयोरपि । वला विद्या विशेषे स्यात् तथा वाट्यालकौषधौ ॥१६०१॥ वलाहको गिरौ मेघे मुस्ते कृष्णहयान्तरे। दैत्यभेदे नागभेदे वल्गुस्तुच्छाग - कान्तयोः ॥१६०२।। हिन्दी टोका-वलय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. गलरोग (गले का रोग विशेष) २. वेला (नदी तट) और ३. कङ्कण (कंगन चूड़ी)। वला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विद्याविशेष और २. वाट्यालक औषधि (वलियारी सौंफ)। वलाहक शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. गिरि (पर्वत) २. मेघ (बादल) ३. मुस्त (मोथा घास) ४. कृष्णहयान्तर (काला घोड़ा विशेष) ५. दैत्यभेद (दैत्य विशेष) तथा ६. नागभेद (नाग विशेष)। वल्गु शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. छाग (बकरा) और २. कान्त (रमणीय)। मूल : वल्गुकं चन्दनेऽरण्ये पणे स्याद् रुचिर त्रिषु । निशाचरी पतंगे च वाकुच्यामपि वल्गुला ॥१६०३॥ वल्मीकोऽस्त्री वामलू रे ना वाल्मीकौ गदान्तरे । वल्लरे मञ्जरौ कृष्णागुरौ कुन्जे च कानने ॥१६०४॥ हिन्दी टोका-नपुंसक वल्गु शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं -१. चन्दन (श्रीखण्ड चन्दन वगैरह) २. अरण्य (वन-जंगल) ३. पण (पैसा वगैरह) किन्तु ४. रुचिर (सुन्दर) अर्थ में वल्गु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वल्गुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं ---१. निशाचरी (राक्षसी) २. पतंग (पक्षी) और ३. वाकुची (वकुची-सोमवल्लिका)। वल्मीक शब्द १. वामलूर (दिमकाण-दीमक द्वारा इकट्ठी की हुई मिट्टी, दिवरा भीड़) अर्थ में पुल्लिग तथा नपुंसक है किन्तु २. वाल्मीकि (वाल्मीकि महर्षि) और ३. गदान्तर (गद विशेष, रोग विशेष) अर्थ में वल्मीक शब्द पुल्लिग माना जाता है। वल्लर शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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