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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वयः शब्द | २७७ कण) भी हो सकता है। और ५. तट (नदी-तालाब का किनारा) को भी वप्र कहते हैं किन्तु पुल्लिग वा शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. प्राकार (किला) २. जनक (पिता) और ३. प्रजापति (ब्रह्मा) । मूल : वयः पतले बाल्यादौ यौवनेऽपि नपुंसकः । वयःस्था सोमवल्लर्यां गुडूच्यां शाल्मलिद्रुमे ॥१५८१॥ सूक्ष्मैलाऽऽली- हरीतक्यामलकी - युवतीष्वपि । अत्यम्ल पर्णी-मत्स्याक्षी काकोलीष्वप्युदीर्यते ॥१५८२।। हिन्दी टोका-नपुंसक वय शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. पतङ्ग (पक्षी) २. बाल्यादि (बाल्यप्रभृति) और ३. यौवन (जवानी) । वयःस्था शब्द स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं -१. सोमवल्लरी (सोमलता) २. गुडूची (गिलोय) ३. शाल्मलिद्रुम (शेमर का वृक्ष) ४. सूक्ष्मैला (छोटी इलाइची) ५. आली (सखी) ६. हरीतकी, ७. आमलकी (धात्री) ८. युवती ६. अत्यम्लपर्णी १०. मत्स्याक्षी (ब्राह्मीसोमलता) और ११. काकोली (डोमकाक की स्त्रीजाति विशेष, डोमकौवी-डोमकाकी)। __ मूल : कुसुम्भबीजे हंस्याञ्च वरटा वरला तथा । वेष्टनाऽर्चनयोः कन्यादिवृतौ वरणं न ना ॥१५८३॥ प्राकारे वृक्षभेदे च वरणः संक्रमोष्ट्रयोः । वरण्डस्त्वन्तरावेद्यां समूहे च मुखाऽऽमये ।।१५८४॥ हिन्दी टोका-वरटा तथा वरला शब्द स्त्रीलिंग है उनमें वरटा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. कुसुम्भबीज (कुसुम वर्षे का बोज) और २. हंसी (मरालो) और वरला शब्द के भी दो अर्थ होते हैं१. वेष्टन (लपेटना) और २. अर्चन (पूजन)। वरण शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-कन्यादिवृति (कन्या वगैरह का वरण-पसन्दगी)। किन्तु पुल्लिग वरण शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. प्राकार (परकोटा, किला) २. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ३. संक्रम (संक्रमण) और ४. उष्ट्र (ऊंट)। वरण्ड शब्द भी पल्लिग है और उसके तोन अर्थ माने गये हैं.--१. अन्तरावेदी (वेदी के अन्दर) २. समूह और ३. मुखाऽऽमय (मुख का आमय-रोग विशेष)। मूल : वरण्डको हस्तिवेद्यां भित्तौ यौवनकण्टके । वर्तुले त्रिषु तु क्षुद्रे विपुले भयसंकुले ॥१५८५॥ वर्ति-सार्योः शस्त्रभेदे वरण्डा गृहपावके । वरदा त्वादित्यभक्ता ऽश्वगन्धा कन्यकास्वपि ॥१५८६॥ हिन्दी टीका-वरण्डक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. हस्तिवेदी (हौदा) २. भित्ति (दोवाल) ३. यौवनकण्टक (जवानी का कण्टक-कांटावर - मुख में फोड़ा) किन्तु त्रिलिंग वरण्डक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. वर्तुल (गोलाकार) २. क्षुद्र ३. विपुल (प्रचुर-अधिक) और ४. भयसंकुल (भयभीत)। वरण्डा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. वति (वत्ती) २. सारी (मैना) ३ शस्त्रभेद (शस्त्र विशेष) तथा ४. गृहपार्श्वक (घर का पार्श्व भाग–बरामदा)। वरदा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. आदित्यभक्ता (सूर्य की भक्ता) २. अश्वगन्धा और ३. कन्यका (लड़की) को भी वरदा कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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