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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - वज्रकण्टक शब्द | २७५ इन्द्रे जिनेन्द्र प्रभेदे पुमान् वज्रधरः स्मृतः । वञ्जुलः स्थलपद्मे स्यादशोके तिनिशद्रुमे ॥१५७० ।। हिन्दी टीका - वज्रकण्टक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. स्नुहीवृक्ष (सेड - सेन्ड नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. कोकिलाक्षवृक्ष (ताल मखाना का वृक्ष) । वज्रतुण्ड शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. गणेश (भगवान गणपति) २. मशक (मच्छर ) ३. गरुड तथा ४. गृध्र ( गीध ) । वज्रधर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. इन्द्र और २. जिनेन्द्रप्रभेद ( जिनेन्द्र विशेष भगवान तीर्थंकर वज्रधर ) । वञ्जुल शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. स्थलपद्म (स्थल कमल) २. अशोक और ३. तिनिशद्रम ( तिनिश नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) । मूल : Jain Education International वेतसे पक्षिभेदे च वटुको भैरवे शिशौ । वठरः पुंसि मूर्खे स्याद् वक्र ऽम्बष्ठे त्रिषु त्वसौ ॥१५७१॥ शठे मन्देऽथ वडभी वडिशाऽऽगारचूडयो: । बण्टो भागे दात्रमुष्टा वकृतोद्वाहकर्मणि ।। १५.७२ ॥ हिन्दी टीका - वञ्जुल शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. वेतस (बेंत) २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष ) । वटुक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. भैरव ( काल भैरव या महाकाल भैरव) और २. शिशु (बच्चा) । वठर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मूर्ख और २. वक्र किन्तु ३. अम्बष्ठ ( वैश्य वर्ण की स्त्री और ब्राह्मण वर्ण के पुरुष से उत्पन्न सन्तान को अम्बष्ठ कहते हैं । इस अम्बष्ठ अर्थ में वठर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इसी प्रकार १. शठ (दुर्जन) और २. मन्द (शिथिल धीमी चाल वाला) अर्थ में भी वठर शब्द त्रिलिंग माना जाता है । वडभी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. वडिश ( वंसी - मछली को मारने का साधन विशेष) और २ आगार चूड़ा ( मकान - गृह का धरणि) । वण्ट शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. भाग ( हिस्सा अंश) २. दात्रमुष्टि (दरांती की मुष्टि) और ३. अकृतोद्वाहकर्म (अविवाहित पुरुष ) । मूल : वण्ठः कुम्भायुधे खर्वे निर्विवाहक्रियेऽपि च । वण्ठरः स्थगिकारज्जौ श्वपुच्छे तालपल्लवे ।। १५७३।। पयोधरे चाश्वमारकोऽपि परिकीर्तितः । वण्ठालः शूर संग्रामे खर्वे नावि खनित्रके ।। १५७४ ।। हिन्दी टीका - वण्ठ शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कुम्भायुध (कुम्भघड़ा जिनका आयुध - अस्त्र है उसको कुम्भायुध कहते हैं) २ खर्व (नाटा, छोटा) तथा ३. निर्विवाहक्रिय (विवाह क्रियारहित - अविवाहित ) । वण्ठर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. स्थगिकारज्जु (स्थगिका की डोरी) २. श्वपुच्छ ( कुत्ते की पूँछ ) ३. तालपल्लव, ४. पयोधर ( स्तन या मेघ) तथा ५. अश्वमारकोष । वण्ठाल शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. शूरसंग्राम (वीरों का युद्ध) २. खर्व (नाटा) ३. नौ (नौका) और ४. खनित्रक ( खनती) इस प्रकार वण्ठाल शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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