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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -लोचक शब्द | २६६ लोक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. भुवन, २. जन (मनुष्य) । लोकेश शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. बुद्धभेद (भगवान बुद्ध विशेष ) २. ब्रह्म परमात्मा तथा ३. पारद (पारा) । लोचक शब्द के चार अर्थं माने गये हैं– १. कज्जल (काजर) २. कर्णपूर (कान का भूषण विशेष ) ३. निर्बुद्धि (बुद्धिहीन, मूर्ख) तथा ४. रम्भा (केला) । इस प्रकार लोचक शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : स्त्रीभालाऽऽभरणे मूर्व्यां निर्मोके श्लथचर्मणि । मांसपिण्डेऽक्षितारायां तथा नीलवाससि ।। १५३५ ॥ मयूरे जैनसाधौ च स्याद्द्द्वयोर्लोचमस्तक: । लोतश्चिन्हे ऽश्रुपाते च लवणे लोचनाम्भसि ॥। १५३६॥ हिन्दी टीका - लोचक शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं - १. स्त्रीभालाऽऽभरण (स्त्री का शिरोभूषण विशेष, मनटीक्का) २. मूर्वी (धनुष की डोरी) ३. निर्मोक (सर्प का केंचुल ) ४. श्लथचर्म (ढीला चमड़ा) ५. मांसपिण्ड, ६. अक्षितारा (नेत्र की कनीनिका) और ७. नीलवासस् (नील कपड़ा) । पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग लोचमस्तक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. मयूर (मोर) २. जैन साधु तथा जैन साध्वी के लिये लोच मस्तका शब्द समझना । लोत शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. चिन्ह, २. अश्रुपात, ३. लवण (नमक) और ४. लोचनाम्भस् (नयन जल) । इस प्रकार लोत शब्द के चार अर्थ जानना । लोमशो मुनिभेदे स्यात् मेषेऽपि परिकीर्तितः । लोला लक्ष्म्यां च जिह्वायां किञ्च चञ्चलयोषिति ॥ १५३७॥ लोर्होस्त्री जोङ्गके लौहे रुधिरे सर्वतैजसे । लोहार्गल स्तीर्थभेदे लौहकीलेत्वसौ मूल : नना ।। १५३८ ।। हिन्दी टीका - लोमश शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. मुनिभेद ( मुनि विशेष - लोमश मुनि) और २. मेष ( गेटा – भेड़ा) । लोला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. लक्ष्मी, २. जिह्वा और ३. चञ्चलयोषित् ( चञ्चल स्त्री) । पुल्लिंग तथा नपुंसक लोह शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. जोंगक (अगरु) २. लौह (लोहा) ३. रुधिर (शोणित) और ४. सर्वतेजस (सभी तेजस पदार्थ ) । पुल्लिंग लोहार्गल शब्द का अर्थ – १. तीर्थभेद (तीर्थ विशेष ) होता है किन्तु २. लौहकील (लोहे का खील, काँटी) अर्थ में लोहार्गल शब्द नपुंसक तथा स्त्रीलिंग माना जाता है, पुल्लिंग नहीं माना जाता । - मूल : Jain Education International रेत्रं रेतसि पीयूषे पटवासे सूत रेतः शुक्र े पारदे च रेपः क्रूर-कदर्ययोः ।। १५३६॥ रेफस्त्रिष्वधमे क्रूरे तथा दुष्ट - कदर्ययोः । रेवट : शूकरे रेणौ वातुले विषवैद्यके ॥। १५४० ॥ हिन्दी टीका - रेत्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. रेतस् (वीर्य) २. पीयूष (अमृत) ३. पटवास (कुंकुम) और ४. सूतक (अशौच ) । सकारान्त रेतस् शब्द भी नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. शुक्र (वीर्य) और २. पारद (पारा) । रेफस् शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. क्रूर (घातक विचार वाला दुष्ट) और २. कदर्य (कठोर निर्दय ) । रेफ शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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