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________________ मूल : २६४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-राक्षसी शब्द ७. रसावास तथा ८. रास (रासलीला)। पुल्लिग रस शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. रास, २. षष्ठीजागरक ३. गोष्ठी, ४. शृङ्गार, ५. उत्सव और ६. रससिद्धि । राहु शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. त्याग और २. ग्रहविशेष (राहुग्रह)। मूल : राक्षसी कौणपी दंष्ट्रा-चण्डा-सन्ध्यामुकीर्तिता । रिष्टं शुभाशुभभाव पापेषु खड्गे स्यात्पुमान् पुनः ॥१५०५॥ रीतिः स्त्रियां लोहकि स्यन्दे गत्यारकूट्योः । प्रचारे लवणे सीम्नि परिपाटी-स्वभावयोः ॥१५०६॥ हिन्दी टीका-राक्षसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. कौणपी, २. दंष्ट्रा (दाढ़) ३. चण्डा (चण्ड नामक राक्षस की पत्नी) और ४. सन्ध्या (सायंकाल, सन्धि काल)। रिष्ट शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शुभ, २. अशुभ भाव, ३. पाप तथा ४. खड्ग (तलवार)। रीति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. लोहकिट्ट (लोह का बीझजंग) २. स्यन्द (टगरना) ३. गति (गमन) ४. आरकूट (पित्तल वगैरह धातु विशेष) ५. प्रचार (प्रचार करना) ६. स्रवण (प्रस्रवित होना) ७. सीमा (हद) और ८. परिपाटी (क्रम विशेष परम्परा) तथा ६. स्वभाव (नेचर) । इस प्रकार रीति शब्द के नौ अर्थ माने जाते हैं। रुचकं सर्जिकाक्षारे माङ्गल्यद्रव्य-माल्ययोः । विडङ्गोत्कट्योः स्वाद्यरसेऽश्वाभरणे तथा ॥१५०७॥ सौवर्चले रोचनायां लवणे रुचकस्त्वयम् । दन्ते पारावते बीजपूरे निष्केऽपि कीर्तितः ।।१५०८।। हिन्दी टोका-रुचक शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. सर्जिकाक्षार २. माङ्गल्यद्रव्य (मांगलिकद्रव्य विशेष) ३. माल्य (माला) ४. विडङ्ग (वायविडंग) ५. उत्कट (अत्यन्त तीव्र) ६. स्वाद्यरस (स्वादिष्ट रस विशेष) और ७. अश्वाभरण (घोड़े का आभूषण)। किन्तु पुल्लिग रुचक शब्द के भी सात अर्थ माने जाते हैं--१. सौवर्चल (सोचर नमक, संचर नमक, क्षार नमक विशेष) २. रोचना (रक्तकल्हार-लाल कमल विशेष) ३. लवण (साधारण नमक) ४. दन्त, ५. पारावत (कबूतरकपोत) ६. बीजपूर (मातुलुग-मातुलिंग) और ७. निष्क (गिन्नी, शुक्की)। इस प्रकार रुचक शब्द के चौदह अर्थ जानना। मूल: रुचा दीप्तौ तथेच्छायां शारिका-शुकवाच्यपि । रुचि: स्त्रियामभिष्वङ्गानुरागेच्छा गभस्तिषु ॥१५०६।। शोभा-बुभुक्षयोः किञ्च रोचनाऽऽलिंगभेदयोः । रुद्रः शिवे वृक्षभेद - गणदेवविशेषयोः ॥१५१०॥ हिन्दी टीका-रुचा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. दीप्ति, २. इच्छा, ३. शारिकावाच् (मैना की बोली) और ४. शुकवाच् (पोपट शूगा की बोली)। रुचि शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. अभिष्वंग (आसक्ति) २. अनुराग (स्नेह-प्रेम) ३. इच्छा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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