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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-युतक शब्द | २५६ युवराजो भावि बुद्धभेदे राजात्मजोत्तमे। योगो नैयायिके द्रव्ये कार्मणे धन-सूत्रयोः ॥१४७५॥ हिन्दी टोका-युतक शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. यौतुक (दहेज) २. मैत्रीकरण (मित्रता करना) ३. चलनायक (चलन का अग्र भाग) ४. संशय (सन्देह) ५. संश्रय (आश्रय) ६. युक्त (मिला हुआ) ७. नारीवस्त्राञ्चल (स्त्री का वस्त्राञ्चल, आँचल) और ८. युग (जोड़ा वगैरह)। युवराज शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. भाविबुद्धभेद (भावो-होने वाले बुद्ध विशेष) और २. राजात्मज उत्तम (राजा का सबसे बड़ा लड़का)। योग शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं नैयायिक (न्यायशास्त्रवेत्ता) २. द्रव्य ३. कार्मण (जड़ी बूटी वगैरह से उच्चाटन, मारण, मोहन आदि) ४. धन और ५. सूत्र (सूत) इस प्रकार योग शब्द के पाँच अर्थ समझने चाहिए। मूल : उपाये संगतौ युक्तौ ध्याने सन्नहने तथा । चारे ऽपूर्वार्थसम्प्राप्तौ वपुःस्थैर्ये च भेषजे ॥१४७६॥ विश्रब्धघाते विष्कम्भाऽऽदौ प्रयोगेऽपि कीर्तितः । योगिनी योगयुक्ता स्यात् तथाऽऽवरणदेवता ।।१४७७।। हिन्दी टोका-योग शब्द के और भी नौ अर्थ माने जाते हैं-१. उपाय, २. संगति, ३. युक्ति, ४. ध्यान, ५. सन्नहन (बन्धन) ६. चार (दूत) ७. अपूर्वार्थसम्प्राप्ति (अपूर्व वस्तु की प्राप्ति) ८. वपुःस्थैर्य (शरीर की स्थिरता) और ६. भेषज (औषध)। योग शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. विश्रब्धघात (विश्वासघात) २. विष्कम्भादिप्रयोग (विष्कम्भ वगैरह नाट्य प्रयोग)। योगिनी शब्द का अर्थ१. योगयुक्ता (योग से युक्त) होता है । तथा योगिनी शब्द का एक और भी अर्थ-२. आवरण देवता (नारायण वगैरह चौंसठ देवता) होता है। इस प्रकार योगिनी शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। योग्यः प्रवीणे योगार्हे संशक्तोपाययोस्त्रिषु । सम्बन्धबाधाभावे च क्षमतायां च योग्यता ॥१४७८॥ योनिः स्त्रीपुंसयोरम्भस्याकरे कारणे भगे। प्राचीनाऽऽमलके रक्त रुधिरे पद्म-ताम्रयोः ॥१४७६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग योग्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. प्रवीण (निपुण दक्ष) और २. योगार्ह (योग के लायक) किन्तु ३. संशक्त (सम्बद्ध) और ४. उपाय अर्थ में योग्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। योग्यता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१ सम्बन्धबाधाभाव (सम्बन्ध बाध न होना) और २. क्षमता (समर्थता)। योनि शब्द पूल्लिग तथा स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. अम्भस् (पानी) २. आकर (खान) ३. कारण (हेतु) और भग (गर्भाशय)। रक्त शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं -१ प्राचीन आमलक (पुराना आँवला) २. रुधिर (शोणित) ३. पद्म (कमल) तथा ४. ताम्र (तांबा) इस प्रकार रक्त शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : सिन्दूरे कुंकुमे हिंगुले कुसुम्भे च हिज्जले । रक्तवर्णो दाडिमे स्याद् बन्धूके च निशाद्वये ॥१४८०॥ मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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