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________________ मूल : २४४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-भूत शब्द भूतं क्ष्मादौ पिशाचादौ न्याये सत्ये नपुंसकम् । त्रिषु प्राणिन्यतीते च सदृशे चोत्तरस्थिते ॥१३८५॥ भूतोघ्नो लशुने भूर्जपादपे च क्रमेलके । भूतात्मा शंकरे विष्णौ शरीरे परमेष्ठिनि ॥१३८६॥ हिन्दी टीका-भूत शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१.क्ष्मादि (प्रथिवो वगैरह-पृथिवी जल तेज वायु और आकाश) २. पिशाचादि (पिशाच वगैरह-भूतप्रेत पिशाच आदि) ३. न्याय और ४. सत्य, किन्तु ५. प्राणी. ६. अतीत (भूतकाल) ७. सदृश और ८. उत्तरस्थित इन चार अर्थों में भूत शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भूतघ्न शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. लशुन, २. भूर्जपत्र (भोजपत्र) ३. क्रमेलक (ऊंट)। भूतात्मा शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शंकर (भगवान महादेव) २. विष्णु (भगवान विष्णु) ३. शरीर और ४. परमेष्ठी (ब्रह्माप्रजापति) । इस प्रकार भूतात्मन् शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए और भूत शब्द के आठ अर्थ जानना, एवं भूतघ्न शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : भूतिर्भस्मनि सम्पत्तौ वृद्धिनामौषधे स्त्रियाम् । भूतिकं कट्फले प्रोक्त यमानी-घनसारयोः ॥१३८७॥ भूमिः क्षितौ स्थानमात्रे जिह्वायामपि कीर्तिता। भूमिका रचनायां स्याद् वेशान्तर परिग्रहे ॥१३८८॥ हिन्दी टीका-भूति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. भस्म (विभूति) २. सम्पत्ति (धनादि सम्पदा) और वृद्धिनामौषध (वृद्धि नाम का औषध विशेष)। भूतिक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं -१. कट्फल (कायफर-जाफर) २. यमानी (जमाइन-आजमा) तथा ३ घनसार (कपूर)। भूमि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. क्षिति (पृथिवी) २. स्थानमात्र ३. जिह्वा (जोभ) । भूमिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. रचना, २. वेशान्तरपरिग्रह (वेश पोशाक विशेष का ग्रहण करना) । इस प्रकार भूमिका शब्द के दो अर्थ जानना। भूरि विष्णौ शिवे शक्र ब्रह्मणि प्रचुरे त्रिषु । भृगु Mनिविशेषे स्यात् सानौ शुक्रग्रहे शिवे ॥१३८६॥ भृङ्गः कलिंगविहगे भृङ्गारे भ्रमरे विटे । भृतिः स्त्री वेतने मूल्ये भरणेऽपि निगद्यते ॥१३६०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग भूरि शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं --१. विष्णु (भगवान विष्णु) । २. शिव (भगवान शङ्कर) ३. शक्र (इन्द्र) ४ ब्रह्म (परब्रह्म परमात्मा) किन्तु ५. प्रचुर (अधिक) अर्थ में भूरि शब्द त्रिलिंग माना जाता है। भृगु शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. मुनि विशेष (भृगु नाम का मुनि) २. सानु (पर्वत को चोटी) ३. शुक्रग्रह और ४. शिव (भगवान शंकर)। भृङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. कलिंगविहग (भूचेंगा पक्षी) २. भृगार (झारी. हथहर) ३. भ्रमर और ४ विट (भरुआ)। भृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वेतन (पगारदरमाहा) २. मूल्य (कीमत) और ३. भरण (रक्षण-- भरण पोषण करना)। मूल: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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