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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पाञ्चाली शब्द | २२३ शंख) और २. जातवेदस् (अग्नि)। पाञ्चाल शब्द १. शास्त्र अर्थ में नपुंसक माना जाता है। और २. पञ्चालदेशज (पंजाब देश प्रान्त में उत्पन्न) अर्थ में त्रिलिंग पाञ्चाल शब्द माना गया है । मूल : पांचाली शालभञ्ज्यां स्याद् द्रौपद्यामपि कीर्तिता। पाटक: स्यान्महाकिष्कौ वाद्य-ग्रामैकदेशयोः ।।१२५८।। अक्षादिचालने मूल द्रव्यापचय - रोधयोः । पाटलः स्यादाशु धान्य-श्वेतलोहित वर्णयोः ॥१२५६।। हिन्दी टोका-पाञ्चाली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शालभजी (कठपुतली) और २. द्रौपदी। पाटक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. महाकिष्कु (२४ अंगुल या १२ अंगुल का प्रमाण विशेष) २. वाद्य (बाजा ३. ग्रामैकदेश (ग्राम का एक ४ अक्षादिचालन (पाशा चौपड़ खेलना) ५. मूलद्रव्यापचय (मूल धन का अपचय-हास) तथा ६. रोध (रोकना)। पाटल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. आशुधान्य (शीघ्र होने वाला धान विशेष) और २. श्वेतलोहितवर्ण (सफेद लाल वर्ण)। दुर्गायां कृष्णवृन्तायां रक्तलोध्र च पाटला। आरोग्ये पटुतायां च पाटवं क्लीवमीरितम् ॥१२६०॥ धूर्ते पटौ पाटविकः पाटी वाट्यालके क्रमे । पाठीनः पाठके मत्स्यविशेषे गुग्गुलुद्रुमे ॥१२६१।। हिन्दी टोका-पाटला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. दुर्गा (पार्वती) २. कृष्णवृन्ता (पाढरी, पाडरी) और ३. रक्तलोध्र (लाल लोध)। पाटव शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. आरोग्य और २. पटुता (दक्षता, चतुरता)। पाटविक शब्द के भी दो अर्थ होते हैं१. धूर्त, और २. पटु (चतुर)। पाटी शब्द के भी दो अर्थ होते हैं -१. वाट्यालक (सोंफ बलियारी) और २. क्रम । पाठीन शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं – १. पाठक (पाठ करने वाला) और २. मत्स्यविशेष (रहु नाम की मछलो) और ३. गुग्गुलुद्र म (गूगल का पेड़)। मूल : कुलिकद्रौ करे पाणिः पाणिघः पाणिवादके । गैरिके कुन्दपुष्पे च पाण्डरं क्लीवमीरितम् ॥१२६२॥ पुमान् मरुबके शुक्लवर्णे तद्वति तु त्रिषु । पाण्डुर्नू पान्तरे रोगे पटोले श्वेतकुञ्जरे ॥१२६३॥ हिन्दी टीका-पाणि शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. कुलिकद्र, (कुलिक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. कर (हाथ) । पाणिघ शब्द का अर्थ–१. पाणिवादक (हाथ को बजाने वाला, ताली पीटने वाला)। पाण्डर शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गरिक (गेरू रंग) और २. कुन्दपुष्प (कुन्द नाम का फूल विशेष)। पुल्लिग पाण्डर शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. मरुबक (मदन, मयनफल) और २. शुक्लवर्ण और ३. शुक्लवर्णयुक्त अर्थ में पाण्डर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पाण्डु शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. नृपान्तर (नृपविशेष - पाण्डु नाम का राजा) २. रोग (पाण्डुरोग) ३. पटोल (परबल) और ४. श्वेतकुञ्जर (सफेद हाथी)। इस तरह पाण्डु शब्द के चार अर्थ जानना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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