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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पक्षिणी शब्द | २२१ (पक्षी के पांख का मूल भाग) २. प्रतिपत्तिथि (प्रतिपदा पड़वा तिथि) और ३. अन्यान्य साहाय्यकृति (अन्यायपूर्वक सहायता करना) । पक्षपात शब्द का अर्थ-१. खगज्वर होता है। पक्षान्त शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. अमा (अमावस्या) और २. पौर्णमासी (पूर्णिमा)। पक्षिणी शब्द के तीन अर्थ होते हैं१. शाकिनीभेद (डाकिनी विशेष) २. पूर्णिमा और ३. खगस्त्री। मूल : आगामिवर्तमानाहर्युक्तायां रजनावपि । पक्ष्म क्लीवं नेत्रलोम्नि किजल्क-खगपक्षयोः ॥१२४६॥ सूत्रादेः स्वल्पभागेऽपि पांशवो लवणान्तरे । पांशुर्ना पर्पटे धूलौं चिरसंचितगोमये ॥१२४७।। हिन्दी टीका-पक्षिणी शब्द का और भी एक अर्थ माना जाता है—१. आगामिवर्तमानाहयुक्ता रजनी (आगामी और वर्तमान दिन से युक्त रात) को भी पक्षिणी कहते हैं । पक्ष्मन् शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. नेत्रलोम (पलक) २. किञ्जल्क (पराग) और ३. खगपक्ष (पक्षी का पांख)। बहवचनान्त पांशु शब्द के दो अर्थ माने गये हैं -१. सूत्रादेःस्वल्पभाग (धागे का सूक्ष्म तन्त) और २. लवणान्तर (नमक विशेष)। पुल्लिग पांशु शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पर्पट (पपड़ी) २. धूलि (रेण) और ३. चिरसंचितगोमय (बहुत दिनों से सञ्चित-एकत्रित किया हुआ-गोमय-गोबर)। दोषे कर्पूरभेदेऽथ पांशुरौ खज-दंशकौ । वर्धापके प्रशंसायां पिष्टाते धूलिगुच्छके ॥१२४८॥ दूर्वांञ्चिततटी भूमौ पुरोटौ पांशुचामरः । पांशुलः पुंश्चले शम्भु खट्वाङ्ग-कलिमारके ॥१२४६॥ हिन्दी टीका-पूल्लिग पांशु शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. दोष, २. कपरभेद (क' र विशेष)। पांशुर शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. खञ्ज (लङ्गड़ा) २. दंशक (काटने वाला दंश डंक मारने वाला) ३. वर्धापक (बढ़ाने वाला) ४. प्रशंसा, ५. पिष्टात (पिठार-पाउडर) और ६. धलिगुच्छक (धूलि का ढेर)। पांशुचामर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. दूर्वाञ्चिततटीभूमि (दुभी से युक्त नदी तट भूमि) और २. पुरोटि । पांशुल शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पुंश्चल (व्यभिचारी) २. शम्भुखट्वाङ्ग (भगवान शङ्कर का खट्वांग-चारपाई का पौआ) और ३. कलिमारक (कांटेदार करजी)। मूल : हरे पापिन्यसौ पुंसि पांशुयुक्त त्वयं त्रिषु । पांशुला केतकी-भूमि-पुष्पिणी-कुलटासु च ॥१२५०॥ पाक: परिणते दैत्ये रन्धने पेचके शिशौ । स्थाल्यादौ साध्वसे भंगे राष्ट्रादौ पानकर्तरि ॥१२५१॥ हिन्दी टीका-पांशुचामर शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. हर (शङ्कर) २. पापी (पापयुक्त) और ३. पांशुयुक्त (रेणु से भरा हुआ) इनमें हर और पापी अर्थों में पांशुचामर शब्द पुल्लिग है और पांशुयुक्त अर्थ में त्रिलिंग समझना। पांशुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. केतकी (केवड़ा) २. भूमि (पृथिवी) ३. पुष्पिणी (रजोवती स्त्री अथवा फूल से युक्त) और ४. कुलटा (व्यभिचारिणी) । पाक शब्द के दस अर्थ होते हैं-१. परिणत (पका हुआ) २. दैत्य, ३. रन्धन (रांधना-पकाना) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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