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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टोका सहित-पर्याप्त शब्द | २१७ पर्यायोऽवसरे द्रव्यधर्म - निर्माणयोः क्रमे । प्रकार-सम्पर्क भिदोः पर्यासः पतने हतौ ॥१२२१॥ हिन्दी टीका-पर्याप्त शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वारण (निषेध, निवारण करना, हटाना) २. तृप्ति, ३. प्राप्ति, ४. शक्ति (सामर्थ्य) और ५. यथेष्ट (इच्छानुसार) । पर्याप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्राप्ति, २. परित्राण (रक्षा करना) और ३. प्रकाश (ज्योति)। पर्याय शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. अवसर (मौका) २. द्रव्यधर्म (पर्यायाथिक नय) ३. निर्माण (रचना) ४. क्रम (बारी से) ५. प्रकार (तद्भिन्न तत्सदृश) और ६. सम्पर्कभिद् (सम्पर्क विशेष)। पर्यास शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. पतन और २. हति (हनन, मारना)। मूल : पर्व क्लीवं क्षणे ग्रन्थौ प्रकारे लक्षणान्तरे । दर्श प्रतिपदोः सन्धौ ग्रन्थविच्छेद ईरितम् ॥१२२२॥ हिन्दी टीका- पर्वन् शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. क्षण (सैकिण्ड, मिनट, पल) २. ग्रन्थि (गांठ) ३. प्रकार (सदृश) ४ लक्षणान्तर (लक्षण विशेष) ५. दर्श (अमा. वस्था) और प्रतिपदा (प्रतिपद्) की सन्धि को भी पर्व कहते हैं और ६. ग्रन्थविच्छेद (ग्रन्थ का विभाग)। इस प्रकार पर्व शब्द के छह अर्थ समझना। पर्वतोऽद्रौ तरौ मीने शाक-देवर्षि-भेदयोः । आकाशमांस्यां गायत्र्यां काल्यां पर्वतवासिनी ॥१२२३॥ शरभे शैलवास्तव्ये पर्वताश्रय ईरितः। पर्वरीणोऽनिले गर्वे पर्णवृन्तरसे स्मृतः ॥१२२४॥ हिन्दी टोका - पर्वत शब्द पूल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. अद्रि (पहाड) २. तरु (वृक्ष) ३. मीन (मछली) ४ शाक, ५ देवर्षिभेद (देवर्षि विशेष) । पर्वतवासिनो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. आकाशमांसी (आकाशमांसी नाम की औषधि विशेष) २. गायत्री (गायत्री मन्त्र) और ३. काली (द)। पर्वताश्रय शब्द भी पल्लिग माना जाता है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. शरभ (शरभ नाम का सबसे बड़ा पक्षी विशेष) २. शैल वास्तव्य (पर्वत पर बसने वाला)। १. अनिल (वायु) २. गर्व (घमण्ड-दर्प) और ३. पर्णवन्तरस (पर्णवृन्त नाम के वृक्ष विशेष का रस)। इस तरह पर्वरीण शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल: पत्रचूर्णरसे द्यूतकम्बले मृतकेऽपि च। पलं विघटिकायां स्यात् साष्टरक्तिद्विमाषके ॥१२२५।। तोलकत्रितये मांसे चतुष्कर्ष - पलालयोः । मुण्डीरी-मक्षिका - लाक्षा - क्षुद्र गोक्षुरकेषु च ॥१२२६॥ हिन्दी टोका-पर्वरीण शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं—१. पत्रचूर्णरस (पत्रचूर्ण नाम के वृक्ष विशेष का रस) २. द्यूतकम्बल, ३. मृतक (मुर्दा)। पल शब्द नपुंसक है और उसके दस अर्थ माने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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