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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टोका सहित-पञ्चांग शब्द | २०५ मूल : पंचाङ्गवे पंचभद्राश्वे प्रणामान्तर-कूर्मयोः । पंचाननो महादेवे सिहेऽत्युग्रे बुधैः स्मृतः ॥११४८॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग पञ्चांग शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पञ्चभद्राश्व (पञ्चभद्र नाम का घोड़ा) २. प्रणामान्तर (प्रणाम विशेष—दण्डवत् प्रणाम) और ३. कूर्म (कच्छप-काचवा)। पञ्चानन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. महादेव, २. सिंह और ३. अत्युग्र (अत्यन्त क्रोध)। मूल : पंचामृतं सिता-दुग्ध-दध्याऽऽज्य मधुसंयुते । पंचाली शारिफलके पुत्तली - गीतभेदयोः ।।११४६॥ श्रोत्रत्वक नेत्ररसन घ्राणे पंचेन्द्रियं विदुः । पंजरः पुंसि कङ्काले गवां नीराजना विधौ ॥११५०॥ हिन्दी टीका-पञ्चामृत शब्द का अर्थ-मिले जुले १. सिता-दुग्ध-दध्याज्यमधुसंयुत (खांड़, चीनी-दूध-दही घृत और मधु शहद) अर्थ होता है । पञ्चाली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. शारिफलक (पाशा चौपड़ का घर) २. पुत्तली (कठपुतली) और ३. गीतभेद (गीत विशेष) । पञ्चेन्द्रिय शब्द का अर्थ-श्रोत्र-कान त्वक्-त्वचा नेत्र-आँख रसन-जिह्वा और ध्राण-नाक इन पाँचों इन्द्रियों को पंचेन्द्रिय कहते हैं। पंजर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गवांकङ्काल (गौ बैल का अस्थि पञ्जर) और २. नीराजना विधि (आरती)। इस प्रकार पञ्जर शब्द के दो अर्थ जानना। कलौ शरीरे क्लीवन्तु पक्ष्यादिबन्धनालये। पंजिका त्वग्र सन्धानी-तूल नालिकयोरपि ॥११५१॥ टीका विशेषे पंचांगे व्ययाय लिपि पुस्तके । कायस्थे पंजिकाकारे पंजिकारक ईरित: ॥११५२॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग पञ्जर शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं—१. कलि (कलह या कलियुग) और २. शरीर किन्तु नपुंसक पञ्जर शब्द का अर्थ ३. पक्ष्यादि बन्धनालय (पक्षी वगैरह का बन्धन गृह) । पञ्जिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. अग्रसन्धानी (आगे के साथ सम्बन्ध जोड़ने वाली) और २. तूल नालिका (कपास की नली) तथा ३. टीका विशेष और ४. पञ्चाङ्ग तथा ५. व्ययआय लिपि पुस्तक (आय-व्यय-आमद-खर्च लिखने की पुस्तक डायरी)। पञ्जिकारक शब्द के दो अर्थ होते हैं--१. कायस्थ और २. पञ्जिकाकार। मूल : पंजी स्त्री पंजिकायां स्यात् नालिका-ग्रन्थभेदयोः । पटोऽस्त्री कर्पटे चित्रपटे शोभनवाससि ।।११५३॥ पुमान् प्रियाल वृक्षेऽसौ त्रिलिंग: स्यात् पुरस्कृते । स्त्रियां पटकुटी वस्त्रगृहे प्राज्ञ : प्रयुज्यते ॥११५४॥ हिन्दी टीका-पजी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पञ्जिका, २. नालिका और ३. ग्रन्थभेद (ग्रन्थविशेष)। पट शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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