SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-न्युब्ज शब्द | २०३ विशेष, जोकि काशिका ग्रन्थ का विवरण माना जाता है) २. त्याग, ३. सन्न्यास और ४. स्थाप्यवस्तु, (थाती, धरोहर) तथा ५. विन्यास और ६. अन्तर्बहिर्देहवर्णादिन्यास (शरीर के अन्दर तथा बाहर अकारादि वर्गों का न्यास विशेष, जोकि 'अं नमः आं नमः' इत्यादि रूप से मुख वगैरह का स्पर्श)। न्युब्ज शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं--१. रुजाभुग्न (लकवा वगैरह बात व्याधि के कारण जिसका अंग बाँका हो गया है) और २. कुब्ज तथा ३. अधोमुख इस प्रकार न्युज शब्द के तीन अर्थ समझना। पुमांस्त्वसौ दर्भमयस्र चि जु चि कुशेऽपि च । न्यूनमूने तथा गडें त्रिलिगः परिकीर्तितः ।।११३७।। पक्वं दृढ़े परिणत-प्रत्यासन्न विनाशयोः । पङ्कोऽस्त्री कर्दमे पापे पङ्कजं कमले मतन् ।।११३८।। हिन्दी टोका-पुल्लिग न्युब्ज शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. दर्भमय स्र च् (कुश का स्र चि) तथा २. स च (काष्ठ लकड़ी का स्र चि) और ३. कुश (दर्भ) । न्यून त्रिलिंग माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. ऊन (कमती) और २. गद्य (निन्द्य)। पक्व शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं.-१. दृढ़ (मजबूत) २. परिणत (परिपक्व, पका हुआ) और ३. प्रत्यासन्नविनाश (जिसका विनाश निकट काल में होने वाला है)। पङ्ग शब्द पूल्लिग तथा नपंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. कर्दम (कीचड़) और २. पाप । पङ्कज शब्द का अर्थ–१ कमल होता है । पङ्कारः सेतु-शैवाल - सोपानेष -अम्बुकुब्जके । पंक्तिर्दशाक्षरच्छन्दोविशेष गौरवेऽवनौ ।।११३६।। पाके पञ्चाक्षरच्छन्दो दश संख्याऽऽवलीष च । पंगुः शनैश्चरे पुंसि जंघाहीने त्वसौ त्रिषु ॥११४०॥ हिन्दी टीका-पङ्कार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. सेतु (बाँध) २. शैवाल ३. सोपान (सीढ़ी-पगथिया) ४. अम्बु कुब्जक (भंवर, जल को भ्रमि विशेष) । पंक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं --१. दशाक्षरच्छन्दो विशेष (दश अक्षरों का छन्द विशेष) २. गौरव, ३. अवनि (पृथिवी) ४. पाक, ५. पञ्चाक्षरच्छन्दः (पाँच अक्षरों का छन्द विशेष) और ६. दशसंख्या तथा ७. आवली (श्रेणी)। पंगु शब्द १. शनैश्चर (शनि) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ८. जंधाहीन (जाँघ रहित) अर्थ में पंगु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार पंगु शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : पाके स्यात्पचनं वह्नौ पचन: पाककर्तरि । पचेलिमोऽर्के ज्वलने स्वयं पक्वे त्वसौ त्रिषु ॥११४१।। हिन्दी टीका-नपुंसक पचन शब्द का अर्थ -१. वन्हि (अग्नि) होता है। और पुल्लिग पचन शब्द का अर्थ-१. पाककर्ता (पकाने वाला) होता है। पुल्लिग पचेलिम शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. अर्क (सूर्य) और २. ज्वलन (वन्हि अग्नि) किन्तु ३. स्वयंपक्व (खुद पका हुआ) अर्थ में पचेलिम शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy