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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नीरज शब्द | १६६ हैं-१. चन्द्र २. वन, ३. नेमि (गाड़ी के पहिया का अग्र भाग) ४ रेवतीभ (रेवती नक्षत्र) और ५. अलीक (मिथ्या-असत्य-अप्रसिद्ध वगैरह) । नीप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कदम्ब का वृक्ष) २. बन्धूक (दोपहरिया फूल विशेष) ३. अशोक (नील अशोक का वृक्ष) और ५. धारा कदम्ब (कदम्ब वृक्ष की धारा श्रेणी)। नीर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. जल और २. रस (मधुरादि रस साधारण) नपुंसक नीरज शब्द का अर्थ-१. सरोरुह (कमल) होता है। मूल : कुष्ठौषधौ च मुक्तायां जलजाते त्वसौ त्रिषु । नीरजो जल मार्जारे लघुकाशेऽपि कीर्तितः ।।१११३॥ हिन्दी टीका -- नीरज शब्द १. कुष्ठौषधि (कूठ नाम का औषधि विशेष) और २. मुक्ता (मोती) तथा ३. जलजात (जलोत्पन्न) इन तीन अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है। किन्तु पुल्लिग नीरज शब्द के दो अर्थ होते हैं—१. जलमार्जार (जल जन्तु विशेष) और २. लघुकाश (छोटा काश डाभ) । मूल : नीरदो मुस्तके मेघे रदहीने त्वसौ त्रिषु । नीरन्ध्र छिद्ररहिते सान्द्रेप्युक्त विलिगकम् ।।१११४।। नीरसो दाडिमे पुंसि त्रिलिंगो रसजिते । कुष्ठौषधौ नीरुजं स्यात् उल्लाघे नीरुजत्रिषु ॥१११५॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग नीरद शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं--१. मुस्तक (मोथा-जलमोथा) और २. मेघ (बादल) किन्तु ३. र दहीन (दाँत रहित) अर्थ में नीरद शब्द त्रिलिंग है । नीरन्ध्र शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. छिद्ररहित (छेद रहित निश्छिद्र) और २. सान्द्र (सघन, निविड)। नोरस शब्द १. दाडिम (अनार बेदाना) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. रसवर्जित (रसशून्य) अर्थ में नीरस शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नीरुज शब्द १. कुष्ठौषधि (कूठ नाम का औषधि विशेष) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. उल्लाघ (नीरोग) अर्थ में नीरज शब्द त्रिलिंग माना गया है । नीलं स्यात् काचलवणे सौवीराजन तुत्थयोः । नृत्याङ्ग करणे नील्यां विष-तालीश पत्रयोः ।।१११६॥ नीलो नीलौषधौ शैलविशेषे वानरान्तरे । इन्द्र नीलमणौ श्यामे मञ्जुघोषे च लाञ्छने ॥१११७॥ हिन्दी टोका-नपुंसक नील शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं -१. काचलवण (क्षार लवण) २. सौवीराञ्जन (अञ्जन विशेष-सुरमा) ३. तुत्थ (छोटी इलाइची) ४. नृत्यांगकरण (एक सौ आठ नृत्य के अंगों में करण नाम का नृत्य का अंग) ५. नीली (नील-गड़ी) ६. विष (जहर) और ७. तालीशपत्र । पुल्लिग नील शब्द के सात अर्थ होते हैं--१. नीलौषधि (नीलौषधि विशेष) २ शैल विशेष (पर्वत विशेषनीलगिरि नाम का पहाड़ जोकि मैसूर के पास है) और ३. वानरान्तर (वानर विशेष) तथा ४. इन्द्र नीलमणि (इन्द्रनील नाम का नीलरंग का मणि विशेष) ५. श्याम (श्याम रंग - शामला) ६. मञ्जुघोष (कोमल शब्द अथवा सुन्दर झोंपड़ी) और ७. लाञ्छन (चिन्ह विशेष) । न्यग्रोधे निधिभेदेऽपि नीलवर्णवति त्रिषु । नीलकं काचलवणे वर्तलोहेऽसने पुमान् ॥१११८।। मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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