SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धृतराष्ट्र शब्द | १७५ हिन्दी टीका-पुल्लिग धृतराष्ट्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. नागभेद (नाग विशेष) २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष - कौवा) ३. सुराजा (उत्तम राजा) तथा ४. दुर्योधनस्य जनकः (दुर्योधन का पिता) को भी धृतराष्ट्र कहते हैं किन्तु ५. हंसयोषित (हंसी) अर्थ में धृतराष्ट्र शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। मूल : धृतिर्योगान्तरे यज्ञ सन्तोषे धारणे सुखे । धारणा-धैर्ययोश्छन्दोविशेषे मातृकान्तरे ।। ६७० ॥ धष्ट: प्रगल्भे निर्लज्जे पतिभेदे त्रिलिंगकः। धेनुका गवि हस्तिन्यां धैनुकं धोनुसंहतौ ॥ ६७१ ॥ हिन्दी टीका धृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं—१. योगान्तर (योग विशेष) २. यज्ञ (याग) ३. सन्तोष, ४. धारण. ५. सुख, ६. धारणा, ७. धैर्य, ८. छन्दोविशेष (पद्यबन्ध विशेष) और ६. मातृकान्तर (मातृका विशेष)। धृष्ट शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. प्रगल्भ (ढीठ) २. निलंज्ज और ३. पतिभेद (पतिविशेष, धष्ट नाम का नायक)। धेनुका शब्द स्त्रीलिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ गो (गाय) २. हस्तिनी (हथिनी) । धेनुक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. धेनुसंहति (गो समुदाय) होता है। मूल : ध्वाङक्षस्तु तक्षके काके बक-भिक्षुकयोरपि । ध्यानं ब्रह्मात्मचिन्तायां चिन्तने संप्रकीर्तितम् ॥ ६७२ ॥ ध्रुवः पुमान् शिवे विष्णौ नासान ध्र वके वटे। शरारिपक्षिणि स्थाणौ प्रभेदे वसु-योगयोः ।। ६७३ ॥ हिन्दी टीका-- ध्वाङक्ष शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. तक्षक (सर्प विशेष) २. काक (कौवा) ३. बक और ४. भिक्षुक (भिखारी)। ध्यान शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं १. ब्रह्मात्मचिन्ता (जीवात्म-परमात्म विषयक चिन्तन-मनन) और २. चिन्तन (विचारना)। ध्र व शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. शिव (शंकर महादेव) २. विष्णु (भगवान विष्णु) ३. नासाग्र (नाक का अग्र भाग) ४. ध्र वक ५. वट (वट का वृक्ष) ६. शरारिपक्षी (आडी नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष) ७. स्थाणु ८. वसुभेद (ध्र व नाम का वसु) और ६. योग (योग समाधि)। उत्तानपादतनये ताराभेदेऽप्यसौ स्मृतः । त्रिलिगो निश्चिते नित्ये निश्चले सन्ततेऽपि च ।। ६७४ ॥ नपुंसकन्तु गगने वितर्केऽथ ध्रुवा स्त्रियाम् । स्र विशेषे शालपयां मूर्वा-गीतिप्रभेदयोः ॥ ६७५ ॥ हिन्दी टीका-ध्रुव शब्द के और भी छह अर्थ माने गये हैं.-१. उत्तानपादतनय (उत्तानपाद का पुत्र--ध्रुव) २. ताराभेद (तारा विशेष ध्र वतारा) किन्तु ३. निश्चित, ४. नित्य, ५. निश्चल और ६. सन्तत (लगातार हमेशा) इन चार अर्थों में ध्र व शब्द त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक ध्र व शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. गगन (आकाश) और २. वितर्क (ऊहापोह)। ध्र वा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy