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________________ १६६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - द्रोणी शब्द नीली वृक्षे देशभेद-द्रोणी लवणयोरपि । इन्द्रचिर्भ टिकायां च द्रोहाटो मृगलुब्धके ॥ ६१८ ॥ हिन्दी टीका - द्रोणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दस अर्थ माने गये हैं - १. काष्ठाम्बुवाहिनी ( डेंडी छोटी नौका) २. गवादिनी । ३ सरिद्भिद् ( नदी विशेष ) ४. शैलभेद (पर्वत विशेष ) ५. शैलसन्धि (पहाड़ का सन्धि जोड़ स्थान ) ६. द्विसूर्पपरिमाणक ( दो सूप प्रमाण पाँच सेर) ७ नीली वृक्ष (गड़ी) . देशभेद (देश विशेष) ६. द्रोणीलवण (नमक विशेष, मीठु विशेष) और १० इन्द्रचिर्भटिका । द्रोहाट शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. मृगलुब्धक ( मृग का शिकारी - व्याध ) है । इस प्रकार द्रोणी शब्द के दस अर्थ और द्रोहाट का एक एक जानना | 5. मूल : वैडालव्रतिके गाथाप्रभेदेऽपि मतः पुमान् । द्वन्द्व रहस्ये कलहे युग्मे मिथुन दुर्गयोः ॥ ६१६॥ पुमान् समास भेदे च रोगभेदेऽपि कीर्तितः । द्वारुपाये द्वारदेशे द्वापरः संशये युगे ॥ २० ॥ - हिन्दी टीका - पुल्लिंग द्रोहाट शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. वैडालव्रतिक ( पाखण्डी, ढोंगी वञ्चक) और २. गाथाप्रभेद ( गाथा विशेष ) । नपुंसक द्वन्द्व शब्द के पाँच अर्थ होते हैं१. रहस्य (एकान्त) २. कलह (झगड़ा) ३. युग्म (जोड़ा ) ४. मिथुन (परस्पर) और ५. दुर्ग ( किला, परकोटा) किन्तु ६. समासभेद (समासविशेष, द्वन्द्व समास) और 9 रोगभेद ( रोगविशेष द्वन्द्व नाम का ज्वर विशेष) इन दोनों अर्थों में द्वन्द्व शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । द्वार् शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. उपाय और २. द्वारदेश ( घर का द्वार -- दरवाजा ) । द्वापर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. संशय और २. युग ( द्वापर नाम का युगविशेष) । मूल : द्वारयन्त्रं तालकेऽपि द्विकः स्यात् काक कोकयोः । द्विजो विप्रेऽण्डजे दन्ते द्विजते तुम्बुरुद्रुमे ।। ६२१ ॥ द्विजन्मा ब्राह्मणे दन्ते खगे क्षत्रिय-वैश्ययोः । द्विजराजस्तुकर्पूरे गरुडेऽनन्त चन्द्रयोः ।। ६२२ ॥ हिन्दी टीका -द्वार यन्त्र शब्द का अर्थ - तालक (ताला) होता है । द्विक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. काक ( कौवा) और २. कोक (चक्रवाक पक्षी विशेष, जोकि सूर्यप्रिय होता है) । द्विज शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -- १. विप्र (ब्राह्मण) २. अण्डज (अण्डा से उत्पन्न होने वाला पक्षी तथा सर्प वगैरह सरीसृप ) ३. दन्त (दाँत) ४. द्विजत (दो बार उत्पन्न होने वाला -- अण्डज पक्षी सर्प, दाँत, ब्राह्मण वगैरह ) और ५. तुम्बुरुद्रम (तुम्बुरु नाम का वृक्ष विशेष ) । द्विजन्मा शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके भी पाँच अर्थ माने गये हैं- १. ब्राह्मण, २. दन्त (दाँत) ३. खग (पक्षी) ४. क्षत्रिय (राजपूत) और 2. वैश्य ( बनिया गाँधी ) । द्विजराज शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. कर्पूर (कपूर) २. गरुड (पक्षी विशेष विष्णु भगवान का वाहन) और ३ अनन्त ( विष्णु वगैरह ) तथा ४. चन्द्र (चन्द्रमा) | मूल : Jain Education International द्विजिह्वः सूचके सर्पे खले दुःसाध्य चोरयोः । द्विजाति ब्राह्मणे वैश्ये क्षत्रियाऽण्डजयो पुमान् ॥ ६२३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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