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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-दाय शब्द | १५५ हिन्दी टीका-दाय शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. दान, २ यौतुकादि (दान द्रव्य), ३. स्थान, ४. सोल्लुण्ठ भाषण (हँसी मखौलपूर्वक बोलना) ५. विभक्तव्य पितृद्रव्य (बाँटने योग्य पैतृक सम्पत्ति) ६. लय (विलय करना) तथा ७. खण्डन (खण्डन करना)। दारद शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पारद (पाड़ा) २. सिन्धु (नदी, समुद) ३. हिंगुल (हिंग) ४. गरलान्तर (गरल विशेष, जहर)। दारू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दारुहरिद्रा (हलदी विशेष) २. देवदारु (वृक्ष विशेष) और ३. हरिद्रा (हलदी)। इस तरह दारू शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। दारु काष्ठे नना क्लीवं पित्तले देवदारुणि । त्रिष्वसौ दारके दातृ-शिल्पिनो रथ दारुक: ।। ८५२ ॥ श्रीकृष्ण सारथौ क्लीवं देवदारुण्यथो स्त्रियाम् । दारुका शालभञ्ज्यां स्याद् दार्दुर जतु-नीरयोः ।। ८५३ ।। हिन्दी टीका-दारु शब्द १. काष्ठ अर्थ में पुल्लिग नहीं है अपितु स्त्रीलिग तथा नपुंसक है किन्तु २. पित्तल (पीतल द्रव्य) तथा ३. देवदारु (देवदारु वृक्ष) इन दोनों अर्थों में दारु शब्द नपुंसक ही माना जाता है परन्तु ४. दारक (बच्चा, शिशु) अर्थ में दारु शब्द त्रिलिंग माना गया है । दारुक शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. दाता (देने वाला) और २. शिल्पी (कारीगर)। दारुक शब्द का ३. श्रीकृष्ण सारथि (कृष्ण भगवान् का सारथी) भी अर्थ होता है । परन्तु ४. देवदारु (देवदारु नाम की लकड़ी काष्ठ विशेष) अर्थ में दारुक शब्द नपुंसक ही माना गया है। स्त्रीलिंग दारुका शब्द का अर्थ-१. शालभजी (कठपुतली) होता है। दादुर शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. जतु (लाख) और २. नीर (पानी)। दासः शूद्रे दानपात्रे धीवरे शूद्रपद्धतौ। ज्ञातात्म-प्रेष्ययोर्दासी भुजिष्या-काकजंघयोः ।। ८५४ ॥ कैवर्तपत्नी - शूद्रस्त्री वेदीष्वार्तगलेऽपि च । दासेरो दासिकापत्ये उष्ट्र कैवर्त दासयोः ।। ८५५ ॥ हिन्दी टोका-दास शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. शूद्र, २. दानपात्र (देने योग्य) ३. धीवर (मलाह-मच्छीमार) और .ज्ञातात्मा और ६. प्रेष्य (दूत)। दासी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी छह अर्थ माने गये हैं-१. भुजिष्या (परिचारिका-नौकरानी) २. काकजंघा (औषधि) ३. कैवर्त पत्नी (मलाहिन) ४. शूद्र स्त्री (शूद्र की स्त्री) और ५. वेदी तथा ६. आर्तगल (नोल झिंटिका-निगुण्डी-कटसरैया)। दासेर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. दासिकापत्य (दासी का पुत्र) २. उष्ट्र (ऊँट) ३. कैवर्त (धीवर मलाह) और ४. दास (शूद्र) इस तरह दासेर शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये। मूल : दाक्षिण्यमनुकूलत्व . दक्षिणाचारयोरपि । दक्षिणा त्रिलिंगोऽसौ दिक्पतिदिगधीश्वरे ॥ ८५६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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