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________________ १४४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तीव्र शब्द मूल : तीव्र त्रपुण्यतिशये तीरे तीक्ष्णाऽश्मसारयोः । त्रिलिङ्गस्तुमतोऽत्युष्णे हरे कटु-नितान्तयोः ॥ ७८८ ॥ हिन्दी टोका-तीव्र शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१, पू (रांगा, कलई) २. अतिशय (अत्यन्त) ३. तोर (तट-किनारा) ४. तीक्ष्ण (कटु) और ५. अश्मसार (इस्पात) किन्तु त्रिलिंग तीव्र शब्द के भी चार अर्थ माने गये हैं - १. अत्युष्ण (अत्यन्त गरम) २. हर (महादेव) और ३. कटु (कठोर) और ४. नितान्त (अत्यन्त)। मूल : तीवा स्यात् कटुरोहिण्यां तुलस्यां तरदीतरौ । महाज्योतिष्मतीवल्ल्यां राजिका गण्डदूर्वयोः ।। ७८६ ॥ तीक्ष्णं विषे खरे शस्त्रे मरणे युद्धलौहयोः। सामुद्रलवणे शीघ्र घण्टापाटलि-चव्ययोः ॥ ७६० ॥ मरकेऽपि यवक्षारे श्वेतवहिषि कुन्दरौ। तीक्ष्ण स्त्रिषु निरालस्ये सुबुद्धौ तिग्म-योगिनोः ॥ ७६१ ॥ हिन्दी टीका-तीव्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. कटुरोहिणी (कुटकी) २. तुलसी, ३. तरदीतरु (वृक्ष विशेष) और ४. महाज्योतिष्मतीवल्लो (माल कांगणी नाम की प्रसिद्ध लता विशेष) तथा ५. राजिका (राई, काला सरसों) और ६. गण्डदूर्वा (दूर्वा विशेष, सफेद दूभी) इस तरह तीव्रा शब्द के छह अर्थ जानना । तीक्ष्ण शब्द नपुंसक है और उसके चौदह अर्थ होते हैं --- १. विष (जहर) २. खर (तीव्र) ३. शस्त्र (अस्त्र) ४. मरण (मृत्यु) ५. युद्ध, ६ लौह, ७ सामुद्र लवण (समुद्री नमक) ८. शीघ्र (जल्दी) 8. घण्टापाटलि (काला पाढर या लोध विशेष, लोध्र विशेष) और १०. चव्य (चाभ नाम का प्रसिद्ध काष्ट विशेष) ११. मरक १२. यवक्षार (ज वाखार) और १३. श्वेतवहिष् (सफेद कुश-दर्भ विशेष) तथा १४. कुन्दुरु (पालक नाम का प्रसिद्ध शाक विशेष) इस प्रकार तीक्ष्ण शब्द के चौदह अर्थ जानना चाहिए। त्रिलिंग तीक्ष्ण शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. निरालस्य (आलस्य रहित, चुस्त, सुस्त नहीं) २. सुबुद्धि (उत्तम बुद्धि) और ३. तिग्म (तीखा) तथा ४. योगी (मुनि महात्मा) इस तरह तीक्ष्ण शब्द के अठारह अर्थ जानना। आत्मत्यागिन्यथो तीक्ष्णकर्माऽऽयःशूलिके त्रिषु। तीक्ष्णगन्धा तु सूक्ष्मैला जीवन्ती राजिकासु च ।। ७६२ ॥ कन्थारी - श्वेतवचयोर्वनायामपि कीर्तिता। तीक्ष्णावचाऽत्यम्लपर्णीमहाज्योतिष्मतीषु च ॥ ७६३ ॥ हिन्दी टीका-तीक्ष्ण शब्द का एक और भी अर्थ माना गया है-१. आत्मत्यागी (महात्मा) इस तरह कुल मिलाकर तीक्ष्ण के उन्नीस अर्थ समझना चाहिए। तीक्ष्णकर्मा शब्द १. आयःशूलिक (लोहे के शूल पर चढ़ाकर किया जाने वाला घातक कर्म को करने वाला) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री विशेष क्रूर कर्म करने वाला हो सकता है। तीक्ष्णगन्धा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. सूक्ष्मैला (छोटी इलाइची) और २. जीवन्ती (दोडी) तथा ३. राजिका (राई, काला सरसों) इसी तरह तीक्ष्णगन्धा शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कन्थारो (वनस्पति मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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