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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चक्षुष्प शब्द | १०६ औज्ज्वल्ये चाकचक्यं स्यात् चाक्रिको घाण्टिकार्थके। तैलकारे शाकटिके चाटश्चौरे प्रतारके ॥ ५८८ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक चक्षुष्प शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है -१. प्रपोण्डरीक (गन्ना, ईख, शेरडी, इक्षु) किन्तु पुल्लिग चक्षुष्प शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं- १. पुण्डरीक (कमल विशेष, श्वेत कमल) २. रसाञ्जन (अञ्जन विशेष सुरमा) और ३. शोभाजन और ४. केतक (केवड़ा फूल) इन चार अर्थों में चक्षुष्प शब्द पुल्लिग माना गया है किन्तु -१. रम्य (रमणीय) और २. चक्षुहित (आँखों के लिये हितकारक) इन दो अर्थों में चक्षुष्प शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस तरह कुल मिलाकर चक्षुष्प शब्द के नौ अर्थ जानना । चाकचक्य शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ१. औज्ज्वल्य (उज्ज्वलता) होता है । चाकिक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. घाण्टिकार्थक (घण्टी वाला, चक्की वाला) और २. तैलकार (तेली घांची) और ३. शाकटिक (गाड़ी वाला) । चाट शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-चौर (चोर दस्यु) और २. प्रतारक (ठगने वाला, ठगहारा) । इस तरह चाक्रिक शब्द के तीन और चाट शब्द के दो अर्थ जानना । मूल : चाटुः स्त्रीपुंसयोमिथ्याप्रियवाक्ये प्रियोदिते । स्फुटवादिन्यथो चाटुपटुः कामुक भण्डयोः ।। ५८६ ।। चारः स्पशे गतौ बन्धकारागार प्रियालयोः । चारकोऽश्वादिपाले स्याद् बन्धे संचारके पटे ॥ ५६० ॥ हिन्दी टीका-चाटु शब्द स्त्रीलिंग पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मिथ्याप्रियवाक्य (मिथ्यायुक्त प्रिय मधुर वचन, खुशामद, चापलूसी) २. प्रियोदित (प्रिय कथन) और ३. स्फुटवादी (स्पष्टवक्ता) । चाटुपटु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कामुक (स्त्रीलम्पट) और २. भण्ड (भडुआ धूर्त) । चार शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. स्पश (गुप्तचर. खुफिया पुलिस) २. गति (गमन करना) ३ बन्ध, ४. कारागार (जेलखाना) और ५. प्रियालय (प्रियगृह-रतिगृह-केलिघर)। चारक शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ हैं-१. वादिपाल (घोड़ा वगैरह का परिचारक) २. बन्ध, ३. संचारक और ४. पट (कपड़ा)। वस्त्रादौ कुकुमादीनां छटा चाचिक्यमुच्यते । चिकुरस्तरले केशे पक्षिभेदे भुजङ्गमे ॥ ५६१ ॥ गृहबभ्रौ वृक्षभेदे चपले तु त्रिलिंगकः । चितिश्चितायां दुर्गायां समूहाङ्कविशेषयोः ।। ५६२ ॥ हिन्दी टीका - चाचिक्य शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-वस्त्रादौ कुकुमादीनां छटा (वस्त्र कपड़ा वगैरह में कुकुम सिन्दूर वगैरह की छटा चिह्न छाप) होता है। चिकुर शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. तरल, २. केश, ३. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) ४. भुजंगम (सर्प) ५. गृहबभ्र (नकूल न्यौला) ६. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) किन्तु ७. चपल (चञ्चल) अर्थ में चिकुर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। चिति स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ हैं-१. चिता (चिता भूमि, मुर्दे को जलाने का स्थान विशेष) २. दुर्गा (पार्वती) ३. समूह (समुदाय) और ४. अङ्क विशेष (दीवाल वगैरह में ईंटें वगैरह को गिनने की संख्या विशेष) को भी चिति कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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