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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-गो शब्द | ६५ हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग गो शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं --१. जननी (माता) २. सौरभैया (सुरभि कामधेनु गाय) किन्तु लोम (रोम) और नोर (जल) इन दो अर्थों में गो शब्द स्त्रीलिंग नहीं माना जाता, अर्थात इन दो अर्थों में गो शब्द पुल्लिग नपुंसक है । गोतम शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. गणभृद् (गणधर विशेष, गोतम नाम के जैन साधु गणधर हुए थे) और २. शतानन्द महामुनि (शतानन्द नाम के महामुनि को भी गौतम कहा जाता है जोकि जनक के गुरु माने जाते हैं। गौर शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं --१. चेतन्यदेव (कृष्ण चैतन्य नाम के गौर महाप्रभुजी) (चन्द्रमा) ३. श्वेतसर्षप (सफेद सरसों) ४. धववृक्ष (पाकर-पोपर वृक्ष) और ५. श्वेतपीत अरुण वर्ण (सफेद पीला और लाल वर्ण विशेप को भी) गोर शब्द से व्यवहार किया जाता है । मूल : गौरीत्वसंजातरज: कन्यायां वरुण स्त्रियाम् । मल्लिका - तुलसी-दारु हरिद्रा वसुधासु च ।। ५०६ ॥ सुवर्णकदली . श्वेतदूर्वा - गोरोचनास्वपि । आकाशमांसी-मञ्जिष्ठा-सरिभेद प्रियङ्गषु ॥ ५१० ।। हिन्दी टीका-गौरो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. असंजातरजकन्या (मासिकधर्मरहित कन्या) २. वरुण-स्त्री (वरुण को स्त्रो) ३. मल्लिका (मालतो-जूही पुष्प विशेष) ४. तुलसी, ५. दारु (लकड़ी) ६. हरिद्रा (हलदो) और ६. वसुधा (पृथिवी)। गोरो शब्द के और भी सात अर्थ माने हैं-१. सुवर्णकदली (कदली विशेष) २. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) ३. गोरोचना (गोरोचन) ४. आकाशमांसी ५. मञ्जिष्ठा (मजीठा) ६. सरिभेद (नदी विशेष) और ७. प्रियंगु (प्रियंगुलता)। मूल : प्रसेनजित् स्त्रियां बुद्धशक्तिभेद-हरिद्रयोः । पार्वत्यां रागिणीभेदे गौरीजं क्लीवमभ्रके ॥ ५११ ॥ ग्रन्थः शास्त्रे धने गुम्फे ग्रन्थनायामनुष्टभि । ग्रन्थिः पिण्डालु-रुग्भेद-भद्रमुस्तासु पर्वणि ॥ ५१२ ॥ हिन्दी टीका-गौरी शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. प्रसेनजित्-स्त्री (प्रसेनजित् की स्त्री) २. बुद्धशक्तिभेद (भगवान बुद्ध को शक्ति विशेष) ३. हरिद्रा (हलदी) ४. पार्वती ५. रागिणीभेद (रागिणी विशेष) को भी गौरी कहते हैं। गीरीज शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. शास्त्र, २. धन (सम्पत्ति) ३. गुम्फ (गुम्फन) ४. ग्रन्थना (गॅथना) ५. अनुष्टुप् (छन्द विशेष ३२ अक्षरों का छन्द)। ग्रन्थि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. पिण्डालु (पिण्डेच्छु) २. रुग्भेद विशेष गांठ विशेष) ३. भद्रमुस्ता (मोथा, जलमोथा) और ४. पर्व (पव-गोर ग्रन्थि)। इस प्रकार ग्रन्थ के पाँच और ग्रन्थि शब्द के चार अर्थ जानना। मूल : वस्त्रादिबन्धे कौटिल्ये ग्रन्थिलो ग्रन्थिपर्णयोः । ग्रन्थिकं पिप्पलीमूले गग्गुलु ग्रन्थिपर्णयो । ५१३ ।। हिन्दी टोका-ग्रन्थि शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं -.. वस्त्रादिबन्ध (वसन ग्रन्थि गांठ) २. कौटिल्य । ग्रन्थिल शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. ग्रन्थि और २. पर्ण (पत्ता । ग्रन्थिक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. पिप्पली मूल २. गुग्गुलु (गुग्गल) ३. ग्रन्थिपर्ण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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