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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - गुच्छफला | ८६ स्त्रियां गुच्छफला द्राक्षा निष्पावी कदलीषु च । वल्लिकण्टारिका-काकमाच्योरथ पुमान् असौ ।। ४७६ ।। हिन्दी टीका - गुच्छफला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. द्राक्षा (दाख, मुनक्का) २. निष्पावी (धान आदि अन्न को साफ करके भूसा रहित करना) और ३. कदली (केला) ४. वल्लिकण्टारिका ( कटार की लतावल्ली) और ५. काकमाची (मकोय, काकप्रिया ) । रीठाकरञ्जे कतके राजादन्यामपि स्मृतः । मूल : गुञ्जा कलध्वनौ चर्चा - गोधूमद्वयमानयोः ॥। ४७७ ।। हिन्दी टीका - गुच्छफल शब्द १. रीठा करञ्ज (इंगुदी, डोठवरन रीठा ) अर्थ में और २. कतक ( मल को दूर करने वाला औषधि विशेष अरीठा) और ३. राजादनी (चिरौंजी ) इन तीन अर्थों में पुल्लिंग ही माना जाता है । गुञ्जा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कलध्वनि (अव्यक्त मधुर ध्वनि, कलरव ) २. चर्चा ( विचारणा) और ३. गोधूमद्वय मान (दो रत्ती, मासा, चनौटी मूंगा आदि) को भी गुञ्जा कहते हैं । इस तरह गुञ्जा शब्द के तोन अर्थ जानना । मूल : काकचिञ्च्यां चतुर्धान्यमान- त्रियवमानयोः । पटहे मदिरागारे गुडो गोक्षुपाकयोः || ४७८ ॥ हिन्दी टीका - गुञ्जा शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. काकचिञ्ची ( करजनी मूंगा) २. चतुर्धान्यमान (चार धान भर मान विशेष, मासा) और ३. त्रियवमान (तीन जो प्रमाण, तीन जो भर का मान विशेष ) |पह (भेरी बाजा) और मदिरागार (शराबखाना) और गोल, एवं इक्षुपाक (गुड गोड) इन चार अर्थों में गुड शब्द जानना । मूल : Jain Education International कार्पासी हस्तिन्नाह - ग्रासेषु च प्रयुज्यते । . गुण रूपादि - शुक्लादि शौर्याद्या ऽऽवृत्तिरज्जुषु ॥ ४७६ ॥ हिन्दी टीका - गुड शब्द और भी तीन अर्थ में प्रयुक्त होता है - १. कार्पासो (कपास, वाड) २. हस्तिन्नाह (हाथी का बन्धन रज्जु, डोरी, रम्सो) और ३. ग्रास ( कवल) इन तीन अर्थों में गुड शब्द IT प्रयोग किया जाता है । गुण शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. रूपादि (रूपरस-गन्ध-स्पर्श वगैरह चौवीस) गुण कहा जाता है, इसी प्रकार २ शुक्लादि (शुक्ल-नील- पीत- हरित-रक्तकपिशचित्र) को भी गुण विशेष कहते हैं एवं २. शौर्यादि (शौर्य-शूरता वीरता, पराक्रम आदि) को भी गुण कहते हैं, और ४ आवृत्ति ( आवर्तन दुहराना) को भी गुण शब्द से व्यवहार किया जाता है, अथवा ५. आवृत्ति रज्जु (रस्सी डोरी की बांट आवर्तन) को भी गुण कहते हैं, इस प्रकार गुण शब्द पाँच अर्थ हो सकते हैं । चार या मूल : त्यागेऽप्रधाने सत्त्वादौ सन्ध्यादौ सूद- इन्द्रिये । मौव्य तन्तौ भीमसेने दोषेतरविशेषणे ॥ ४८० ॥ हिन्दी टीका - गुण शब्द के और भी दस अर्थ माने जाते हैं - १. त्याग ( त्यागना) २. अप्रधान ( गौण ) ३. सत्त्वादि (सत्व रज-तम) ४. सान्ध्यादि (सन्धि विग्रह-यान - आसन द्वैध आश्रय - ये छह भी गुण कहलाते हैं ) ५. सूद (ब्याज ) ६. इन्द्रिय (चक्षु श्रोत्र प्रभृति) ७ मौत्र (धनुष की डोरी) ८. तन्तु (सूत्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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