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________________ प्रकाशकीय भारतीय साहित्य की विविध विभावों में 'कोश-विषा' का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कोया अर्थात् मह संग्रह अनेक प्रकार से होता है-पर्यायवाची शब्दों का संग्रह, अनेकार्थवाची शब्दों का संग्रह, ऐसे संग्रह जिसमें एक ही भाषा में शब्द उसके अर्थ व विवेचन हों, ऐसे शब्द-संग्रह जिसमें शब्द एक भाषा में हो तथा अर्थं अन्य भाषा में, कुछ शब्द संग्रह कोणा किसी विशिष्ट कवि, विशिष्ट बोली आदि पर आधारित होते हैं, कुछ कोश किसी विशिष्ट विषय के महत्वपूर्ण अन्य प्रन्थों में आये मुख्य शब्दों / प्रतीकों को स्पष्ट करने के लिए बनाये जाते है अर्थात् 'को' किसी विशेष उद्देश्य तथा किसी विशेष क्षेत्र की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बनाये जाते हैं । जैन साहित्यकारों ने इस विधा में सतत परिश्रम करके जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश और जैन लक्षणावली आदि शब्दकोशों का सृजन कर जैन वाङ्मय को समृद्ध किया है। इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है यह 'जैन पुराणकोश' । 7 पुराण अर्थात् प्राचीनकाल में हुई घटनाओं व उनसे सम्बद्ध कथाओं - आख्यानों का संग्रह । पुराण प्रमुख ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन पर आधारित होते हैं जिनमें उनके जीवनचरित के अतिरिक्त देश नगर, राज्य, धर्म, नीति, सिद्धान्त, तीर्थ, सत्कर्मप्रवृत्तियां संयम - तप त्याग - वैराग्य ध्यान योग कर्मसिद्धान्त तथा विविध कलाओं व विज्ञान के विवरण भी मिलते हैं। इस प्रकार पुराणों में आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व ऐतिहासिक आदि पक्षों से सम्बन्धित पुष्कल सामग्री उपलब्ध होती है अतः पुराण इतिहास के स्रोत हैं, संस्कृति के भण्डार हैं। यही कारण है कि समाज में पुराणों के अध्ययन - स्वाध्याय की परम्परा अक्षुण्ण है। पुराणों को समझने के लिए उनमें आये पारिभाषिक शब्दों, संज्ञा शब्दों के अर्थ, सन्दर्भ आदि की जानकारी आवश्यक है । पुराण- प्रसिद्ध व्यक्ति, स्थल, विषय, गुण आदि की स्पष्ट जानकारी शोधार्थियों / विद्वानों आदि के लिए तो आवश्यक होती ही है सामान्यजन के लिए भी वह उपयोगी व लाभकारी होती है, इस दृष्टि से जैनविद्या संस्थान समिति ने 'जैनपुराग कोश' की आवश्यकता का अनुभव किया और विशाल एवं बहुविध जैनपुराणसाहित्य में से प्रमुख पाँच पुराणों यथा - १. महापुराण २. पद्मपुराण ३. हरिवंशपुराण ४. चरित में प्रयुक्त संज्ञा शब्दों के अर्थ व सन्दर्भों को जानकारी के लिए कोश के निर्माण की यह कार्य देश के यशस्वी विद्वानों प्रो० प्रवीणचन्द्र जैन, जयपुर तथा डॉ० दरबारीलाल परिश्रम के पश्चात् पूर्ण किया । इसके लिए हम इनके आभारी हैं तथा इनके प्रति कृतज्ञता संस्थान में कार्यरत विद्वान् डॉ० कस्तूरचन्द्र सुमन ने पूर्ण सहयोग किया एतदर्थ वे भी धन्यवाद के पात्र हूँ । पाण्डवपुराण ५. वीरवर्द्धमानयोजना को क्रियान्वित किया । कोठिया ने अपने दस वर्षों के व्यक्त करते हैं । इस कार्य में डॉ० गोपीचन्द पाटनी पूर्व संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी Jain Education International ज्ञानचन्द्र बिन्दुका पूर्व संयोजक जैन विद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी For Private & Personal Use Only डॉ० कमलचन्द सोगाणी संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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