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________________ परिशिष्ट १. भीमावलि २. जित ५. सुप्रतिष्ठक ६. अचल ९. अजितनाभि १०. पीठ १. भीम ५. काल ९. उन्मुख अंग-प्रविष्ट २. महाभीम ६. महाकाल ७. आत्मप्रवादपूर्व १०. विद्यानुपूर्व १३. क्रियाविशालपूर्व १. परिकर्म ५. चूलिका वर्तमान रुद्र १. आचारांग ४. समवायांग ७. श्रावकाध्ययनांग १०. प्रश्नव्याकरणांग ११ विपाकसूत्रांग १. चन्द्रप्रज्ञप्ति ४. द्वीपसमुद्रप्रति ३. रुद्र ४. विश्वानल ७. पुण्डरीक ८. अतिचर ११. सात्यकिपुत Jain Education International वर्तमान नारद १. पूर्वान्त ४. अध्रुव ७. कल्प/महाकल्प १.० सर्वार्थकल्पक १३. सिद्धि ૬૪ ३. रुद्र ४. महारुद्र ७. चतुर्मुख ८. नरवक्त्र श्रुत-भेद अंग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग ६. ज्ञातृधर्मकथांग ८. अन्तकृद्दशांग ९. अनुतरोपपाधिकयांग १२. दृष्टिवादांग पूर्व २. अग्रायणीयपूर्व १. उत्पापूर्व ४. अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व ५. ज्ञानप्रवादपूर्व ८. कर्मप्रवादपूर्व ११. कल्याणपूर्व १४. लोकबिन्दुपूर्व अंश बाह्य त २. स्तवन १. सामायिक ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण ५. वैनयिक ६. कृतिकर्म ७. दशवैकालिक ८. उत्तराध्ययन ९. कल्पव्यवहार १०. कल्पाकल्प ११. महाकल्प १२. पुण्डरीक १२. महापुण्डरी १४. निका २. सूत्र ३. अनुयोग हपु० ६०.५३४-५३६ हपु० ६०.५४८-५४९ परिकर्म के भेव हपु० २.१०२-१०५, १०.१२५ - १२६ दृष्टियांग के मेव २. अपरान्त ५. अच्यवनलब्धि ८. अर्थ ११. निर्वाण १४. उपाध्याय हपु० २.९२-९५ ३. वीर्य प्रवादपूर्व ६. सत्यप्रवादपूर्व ९. प्रत्पाख्यानपूर्व १२. प्रागावायपूर्व हपु० २.९७-१०० २. सूर्यप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अग्ग्रायणीयपूर्व को चौदह वस्तुएँ ४. पूर्वगत पु० १०.६१ ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति हपु० १०.६२ ३. ध्रुव ६. अध्रुव सम्प्रणधि ९. भौमावय १२. अतीतानागत हेपु० १०.७७-८० १. कृति ५. प्रकृति अप्रायणीयपूर्व के कर्मप्रकृति प्राभूत के योगद्वार २. वेदना ४. कर्म ३. स्पर्श ७. निबन्धन ८. प्रक्रम ११. मोक्ष १२. संक्रम १५. लेश्यापरिणाम -१६. सातासात १९. पुद्गलात्मा २०. निघतानिपतक ६. बन्धन १०. उदय ९. उपक्रम १३. लेश्या १४. लेश्याक १७. दीर्घ ह्रस्व १८. भवधारणा २१. सनिकाचित २२. अनिकाचित २३. कर्मस्थिति १. पर्याय श्रुतज्ञान के भेद २. पर्याय - समास ५. पद ४. अक्षर-समास ७. संघात ८. संघात -समास १०. प्रतिपत्तिसमास ११. अनुयोग १२. प्रामृतात १४. प्राभूत-भूतसमास १६. प्राभृत समास १९. पूर्व १७. वस्तु २०. पूर्व समास चूलिका के भेद १. आकाशगता हपु० १०.१२३-१२४ ३. मायागता हपु० १०,१२३ ५, स्थलगता हपु० १०.१२३-१२४ जैन पुरागकोश: ५०५ वाला । २४. स्कन्ध हपु० १०.८२-८६ ३. अक्षर ६. पद-समास ९. प्रतिपत्ति १२. अनुयोग-समास १५. प्रामृत १८. वस्तु समास श्रोता -भेद एवं गुण श्रोताओं की विविधता For Private & Personal Use Only हपु० १०.१२-१३ २. जलगता हपु० ६१.१२३ ४. रूपगता हपु० १०.६१,१२३ उपमानों का नाम निर्देश करके उनके समान स्वभाव-भेद दर्शाकर बोता के चौदह भेद बताये गये है। उपमानों के नाम निम्न प्रकार है१. मिट्टी - शास्त्र श्रवण काल में कोमल परिणामी पश्चात् कठोर परिणामी । २. पलनीसारतत्व के परित्यागी, निसार ग्राही ३. बकरा - श्रृंगार का वर्णन सुनकर श्रृंणानरूप परिणामो । ४. विलार्मोपदेश सुनकर भी करयवृत्ति-वारो । ५. तोता - धर्मोपदेश के शब्द मात्र ग्राही । ६. बगुला - ब्राह्म से भद्र परिणामी अन्तरंग से कुटिल परिणामी । ७. पाषाण - उपदेश से अप्रभावित श्रोता । ८. सर्प - सदुपदेश का भी जिन पर कुप्रभाव पड़ता है । ९. गाय - कम सुनकर अधिक लाभ लेनेवाली । १०. हंस - सारग्राही । ११. भैंसा - उपदेश ग्राह्यता कम कुतर्कों से सभा शोभित करने १२. फूटा घड़ा - जिसके हृदय में उपदेश न ठहरे । १२. उपदेश पद्म न करके सभी को व्याकुलित करनेवाला । १४. जक केवल अवगुण ग्राही । मपु० १.१३८-१३९. www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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