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________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ४९९ पुद्गल, मंगल द्रव्य, नय और नरक भूमियाँ पुद्गल के छः भेद १. सूझमसूक्ष्म २. सूक्ष्म ३. सूक्ष्मस्थूल ४. स्थूल-सूक्ष्म ५. स्थूल ६. स्थूल-स्थूल मपु० २४.१४९ अष्ट मंगल-द्रव्य २. ध्वजा ३. कलश ४. चमर ५. सुप्रतिष्ठक ठोना। ६. झारी ७. दर्पण ८. ताड़-पंखा मपु० १३.३७,९१३ नय १. नैगम ५. शब्द २. संग्रह ३. व्यवहार ४. ऋजुसूत्र ६. समभिरुढ ७. एवंभूत हपु० ५८.४१ नरक-भूमियों के रूदनाम धर्मा प्रत्येक निकाय में होनेवाले विशिष्ट देव-भेद १. इन्द्र २. सामानिक ३. त्रायस्त्रिश ४. पारिषद् ५. आत्मरक्ष ६. लोकपाल ७. अनीक ८. प्रकीर्णक ९. आभियोग्य १०. किल्विषिक मपु० २२.१४-२९, वीवच० १४.२५-४१ ध्यान-भेद आर्तध्यान के भेद १. इष्ट वियोगज२. अनिष्ट संयोगज ३. निदानप्रत्यय ४. वेदनोद्गमोद्भव मपु० २१.३४-३५ रौद्रध्यान के भेद १. हिंसानन्द २. मृषानन्द ३. स्तेयानन्द ४. संरक्षणानन्द मपु० २१.४३ धर्मध्यान के भेद १. अपायविचय २. उपाय विचय ३. जीवविचय ४. अजीवविचय ५. विपाकविचय ६. विरागविचय ७. भवविचय ८. संस्थानविचय ९. आज्ञाविचय १०. हेतुविचय मपु० २१.१४०-१६०, हपु० ५६.४०-५० शुक्लध्यान १. पृथकत्ववितर्कवीचार २. एकत्ववितर्कवीचार मपु० २१.१६८ परमशुक्लध्यान १. सूक्ष्मक्रियापाति २. समुच्छिन्नक्रियानिवर्ति मपु० २१.१९५-१९६ परीषह तथा धर्म-भेद परीषह १. क्षुधा २. तृषा ३. शीत ४. उष्ण ५. दंश मशक ६. नाग्न्य ७. अरति-रति ८. स्त्री ९. चर्या १०. भू-शय्या ११. निषद्या १२. आक्रोश १३. वध १४. याचना १५. अलाभ १६. अदर्शन १७. रोग १८. तृणस्पर्श १९. प्रज्ञा २०. अज्ञान २१. मल २२. सत्कार पुरस्कार मपु० ११.१००-१०२ नरक-भूमियाँ १. रत्नप्रभा २. शर्कराप्रभा ३. बालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तमःप्रभा ७. महातम-प्रभा वंशी शिला (मेघा) अंजना अरिष्टा माधवी माधवी मपु०१०.३१-३२ भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव के १०८ नाम (महापुराण पर्व २४.३०-४५) क्रमांक नाम श्लोक क्रमांक नाम श्लोक १. अक्षय्य ३५ १५. अनश्वर २. अक्षर ३५ १६. अनादि ३. अग्रय ३७ १७. अनित्वर ४. अच्युत ३४ १८. अपार ५. अज ३० १९. अपारि ६. अजर ३४ २०. अमध्योपिमध्यम ७. अणीयान् ४३ २१. अयोनिज ८. अर्धमारि ३९ २२. अरज ९. अधिज्योति ३४ २३. अरहा १०. अधिदेव ३० २४. अरिहा ११. अध्वर ४१ २५. अर्हत् १२. अनक्ष ३५ २६. आज्य १३. अनक्षर ३५ २७. आत्मभू १४. अनन्त ३४ २८. आदिदेव धर्म १. उत्तम क्षमा ४. उत्तम शौच ७. उत्तम तप १०. उत्तम ब्रह्मचर्य २. उत्तम मार्दव ५. उत्तम सत्य ८. उत्तम त्याग ३. उत्तम आर्जव ६. उत्तम संयम ९. उत्तम आकिंचन्य मपु० ११.१०३-१०४ शौच धर्म को पांचवां धर्म भी कहा है मपु. ३६.१५७-१५८ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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