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________________ ४६० : जैन पुराणकोश सुलस-सुवर्णतेज सेन की रानी । नलिनकेतु इसका पुत्र था । मपु० ६३.९९-१०० (३) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पोदनपुर नगर के राजा सुस्थित की रानी । सुप्रतिष्ठ इसका पुत्र था। मपु० ७०.१३८-१३९ सुलस-निषध पर्वत से उत्तर की ओर विद्यमान पाँच महाह्रदों में एक महाद। इसमें इसी नाम का एक नागकुमार देव रहता है। मपु० ६३.१९८-२०१, हपु० ५.१९६-१९७ सुलसा-भरतक्षेत्र में चारणयुगल नगर के राजा सुयोधन और रानी अतिथि की पुत्रो। राजा सगर ने षड्यंत्र रचकर इसे विवाह लिया था । मधुपिंगल का इसके साथ विवाह न हो सके इसके लिए सगर ने षडयंत्र रचा। मधुपिंगल निदानपूर्वक मरकर महाकाल नामक असुर हआ । इस असुर ने विभंगावधिज्ञान से अपने पूर्वभव की घटनाएँ स्मरण कर वैरवश सगर के वंश को निमूल करना चाहा था। इस असुर ने सगर के नगर में तीव्र ज्वर उत्पन्न किया था तथा यज्ञ से उसे शान्त करने की घोषणा की थी। क्षीरकदम्बक के पुत्र पर्वत को इस असुर ने अपना हितैषी बना लिया था। यज्ञ में जिन पशुओं को पर्वत होमता था उन पशुओं को विमान से इस असुर ने आकाश में जाते हुए दिखाकर "वे पशु स्वर्ग गये हैं" ऐसा विश्वास उत्पन्न करा दिया था और राजा सगर की आज्ञा से इसे भी यज्ञ में होंम दिया था । मपु० ६७.२१३-२५४, ३४४-३४९, ३५४-३६३, हपु० २३. ४६-१४६ सलोचन-(१) बिहायस्तिलक नगर का राजा । इसका सहस्रनयन पुत्र तथा उत्पलमती पुत्री थी। भरतक्षेत्र में विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के चक्रवालनगर का राजा पूर्णघन इसकी पुत्री को चाहता था किन्तु निमित्तज्ञानी के अनुसार इसने अपनी पुत्री पूर्णघन को न देकर सगर चक्रवर्ती को दी थी। इसके लिए इसे पूर्णधन के साथ युद्ध भी करना पड़ा था तथा यह युद्ध में पूर्णघन के द्वारा मारा गया था। पपु० ५.७६-८० (२) राजा धृतराष्ट्र आर राना गाधारा का वासवां पुत्र । पापु० ८.१९५ सुलोचना-(१) तीर्थकर पार्श्वनाथ के संघ की प्रमुख आर्यिका। मपु० ७३.१५३ (२) द्रौपदी की धाय । इसने द्रौपदी को उसके स्वयंवर में आये राजकुमारों का परिचय कराया था । पपु० १५.८१-८४ (३) भरतक्षेत्र के काशी देश की वाराणसी नगरी के राजा अकम्पन और रानी सुप्रभा देवी की पुत्री। इसके हेमांगद आदि एक हजार भाई तथा लक्ष्मीमती एक बहिन थी। रंभा और तिलोत्तमा इसके अपरनाम थे । इसने अपने स्वयंवर में आये राजकुमारों में जयकुमार का वरण किया था। भरतेश चक्रवर्ती के पुत्र अर्ककीति ने इनके लिए जयकुमार से युद्ध किया परन्तु इसके उपवास के प्रभाव से युद्ध समाप्त हो गया था। इसने जयकुमार पर गंगा नदी में काली देवी के द्वारा मगर के रूप में किये गये उपसर्ग के समय पंच नमस्कार मंत्र का ध्यान कर उपसर्ग समाप्ति तक आहार-जल का त्याग कर दिया था। इस त्याग के फलस्वरूप गंगादेवी ने आकर उपसर्ग का निवारण किया। जयकुमार ने इसे पट्टवन्ध बाँध कर अपनी पटरानी बनाया था। इसके पति के शील की कांचना देवी ने परीक्षा ली थी। वह जयकुमार को उठाकर ले जाना थी चाहती किन्तु इसके शील के प्रभाव से भयभीत होकर अदृश्य हो गयी थी। जयकुमार के दीक्षित हो जाने पर इसने भी ब्राह्मी आयिका से दीक्षा से ली थी तथा तप करके यह अच्युत स्वर्ग में देव हुई थी। यह चौथे पूर्वभव में मृणालवती नगरी के एक सेठ की रतिवेगा नाम को सती पुत्री थी। तीसरे पूर्वभव में रतिषेण नाम की कबूतरो हुई। दूसरे भव में वायुरथ विद्याधर की प्रभावती नाम की पुत्री तथा पहले पूर्वभव में यह स्वर्ग में देव थी। मपु० ४३.१२४-१३६, ३२९, ४४.३२७-३४०, ४५.२-७, १४२१४९, १७९-१८१, ४६.८७, १०३-१०५, १४७-१४८, २५०-२५१, ४७.२५९-२६९, २७९-२८९, हपु० १२.८-९, ५१, पापु० ३.१९ २८, ६१, २७७-२७८ सुवक्त्र-विद्याधर । यह नमि का वंशज था। विद्यु न्मुख इनके पिता और विधु दंष्ट्र पुत्र था । पपु० ५.१६-२१, हपु० १३.२४ सुबन-विद्याधर । यह नमि के वंशज राजा वज्र का पुत्र और वजभृत का पिता था । पपु० ५.१६-२१, हपु० १३.२२ सुवत्सा-पूर्वविदेहक्षेत्र का एक देश । यह सीता नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित है। कुण्डला नगरी यहाँ की राजधानी थी। मपु० ६३.२०८-२१४, हपु० ५.२४७, २५९ सुवप्रा-पश्चिम विदेहक्षेत्र में नील पर्वत और सीतोदा नदी के मध्य स्थित इस नाम का देश । बैजयन्ती इस देश की राजधानी थी। मपु० ६३.२०८-२१६, हपु० ५.२५१, २६३ सुवर्चस्-राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का अड़सठवां पुत्र । पापु० ८.२०१ सुवर्णकुम्भ-प्रथम बलभद्र विजय के दीक्षागुरु । मपु० ५७.९६, ६२. सुवर्णकूट-शिखरिन् कुलाचल का सातवां कूट । हपु० ५.१०५-१०६ सुवर्णकूला-चौदह महानदियों में ग्याहवीं नदी । यह पुण्डरीक सरोवर से निकली है । मपु० ६३.१९६, हपु० ५.१२३-१२४, १३५ सवर्णतिलक-विजयाध पर्वत की अलका नगरी के राजा विधु दंष्ट्र विद्याधर का पौत्र और सिंहरथ का पुत्र । सिंहरथ ने इसे हा राज्य देकर मुनि धनरथ से दीक्षा ली थी। मपु० ६३.२४१, २५२-२५४ सवर्णतिलका-धातकीखण्ड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में स्थित तिलकनगर के राजा अभयघोष की रानी। इसके विजय और जयन्त दो पुत्र थे। पृथिवीतिलका इसकी सौत थी। राजा के उसमें आसक्त हो जाने से विरक्त होकर इसने सुमति गणिनी से आर्यिका-दीक्षा ले ली थी। मपु० ६२.१६८-१७५ सुवर्णतेज-हेमांगद देश में स्थित राजपुर नगर के कनकतेज वैश्य और उसकी स्त्री चन्द्रमाला का पुत्र । इसी नगर का सेठ रत्नतेज अपनी पुत्री अनुपमा इसे विवाहना चाहता था किन्तु इसकी दरिद्रता और मूर्खता के कारण उसने अपनी पुत्री का विवाह इसके साथ नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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