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________________ ४५२ : जैन पुराणकोश सुप्रतिष्ठक-सुप्रभा सुवीर के ये दीक्षागुरु थे । मपु०७०.१२२-१२४, १३८-१४४, हपु० था। इन दोनों का शरीर पचास धनुष ऊँचा था और आयु तीस १८.९-११, ३०, लाख वर्ष की थी। इन्होंने अन्त में भाई के मरण-वियोग से संतप्त (२) रुचकवर पर्वत की दक्षिण दिशा में स्थित आठ कूटों में होकर सोमप्रभ मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा तप द्वारा कर्मों की आठवां कट । चित्रा देवी की यह निवासभूमि है । हपु० ५.७१० निर्जरा करके मोक्ष प्राप्त किया था। मपु० ६०.६३-६९, ८०-८१, (३) वाराणसी नगरी का राजा। यह तीर्थंकर सुपाश्व का पिता पपु० २०.२४८, हपु० ६०.२९०, वीवच० १८.१०१, १११ था । मपु० ५३.१८-१९, २३, पपु० २०.४३ (५) तीर्थकर नमिनाथ का पुत्र । मपु० ६९.५२ (४) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर (६) सनत्कुमार चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव धर्मरुचि राजा का के राजा श्रीचन्द्र और रानी श्रीमती का पुत्र । सुनन्दा इसकी रानी पिता । तिलकसुन्दरी इसकी रानी थी। पपु० २०.१४७-१४८ थी । इसका पिता इसे राज्य देकर दीक्षित हो गया था। इसने भी (७) महापुरी नगरी के राजा धर्मरुचि के दीक्षागुरु । पपु० संसार को नश्वर समझकर सुदृष्टि पुत्र को राज्य सौंपकर सुमन्दर २०.१४९ मुनि से दीक्षा ले ली थी। आयु के अन्त में इसने एक मास का (८) महापदम चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव तथा वीतशोका नगरी सन्यास धारण कर लिया था। इस प्रकार समाधिपूर्वक मरण करके के चिन्त नामक राजा के दीक्षागुरु । पपु० २०.१७८ यह जयन्त नामक अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुआ था। मपु० ७०. (९) सीता के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ एक राजकुमार । पपु० ५१-५९, हपु० ३४.४३-५० २८.२१५ (५) कुरुवंशी एक राजा। यह श्रीचन्द्र का पुत्र था। हपु० (१०) विनीता नगरी का राजा । इसकी रानी प्रह्लादना तथा ४५.१२ सूर्योदय और चन्द्रोदय पुत्र थे । पपु० ८५.४५ (६) मगधदेश का एक नगर । मपु०७६.२१६ (११) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मत्तकोकिल ग्राम के राजा सुप्रतिष्ठक-पाँचवाँ रुद्र । हपु० ६०.५३४-५३६ दे० रुद्र-३ कान्तशोक का पुत्र । इसने संयत मुनि के पास जिनदीक्षा ले ली थी। सुप्रतिष्ठित-एक नगर । लोलुप हलवाई इसी नगरी में रहता था। कषायों की उपशम अवस्था में मरणकर यह सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न मपु० ८.२३४ दे० लोलुप हुआ। यह स्वर्ग से चयकर विद्याधरों का राजा बाली हुआ । पपु० सुप्रबुद्ध-(१) अधोवेयक का तीसरा इन्द्रक विमान । हपु० ६.५२ १०६.१९०-१९७ (२) रुचकगिरि का दक्षिण दिशा सम्बन्धी कूट । सुप्रणिधि (१२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. दिक्कुमारी देवी को यह निवासभूमि है । हपु० ५.७०८ १९७ सुप्रबुद्धा-(१) रुचकगिरि के तीसरे मन्दरकूट पर रहनेवाली एक सुप्रभा-(१) विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी के किन्नरोद्गीत नगर के दिक्कुमारी देवी । हपु० ५.७०८ युवराज अशनिवेग की स्त्री। इसकी पुत्री श्यामा थी जो वसुदेव को (२) नन्दीश्वर द्वीप की पश्चिम दिशा सम्बन्धी अंजनगिरि की विवाही गयी थी। हपु० १९.८०-८३, ९५ दक्षिण दिशा में स्थित एक वापी । हपु० ५.६६२ (२) समवसरण के आम्रवन की एक वापी । हपु० ५७.३५ (३) साकेत नगर के राजा अरिंजय के पुत्र अरिंदम और उनकी (३) राजा समुद्रविजय के छोटे भाई अभिचन्द्र की रानी । मपु० श्रीमती रानी की पुत्री। इसने प्रियदर्शना आर्यिका से दीक्षा ले ली ७०.९९, हपु० १९.५ थी। आयु के अन्त में सौधर्म इन्द्र की यह मणिचला नाम की देवी (४) त्रिश्रृंगपुर नगर के राजा प्रचण्डवाहन और रानी विमलप्रभा हुई। मपु० ७२.२५, ३४-३६ की दूसरी पुत्री । हपु० ४५.९५-९८ सुप्रभंकरा-नन्दीश्वर द्वीप के उत्तरदिशा सम्बन्धी अंजनगिरि की पूर्व (५) धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में स्थित गंधिल देश दिशा में स्थित एक वापी । हपु० ५.६६४ की अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा की रानी और अजितंजय की सुप्रभ-(१) धृतवर द्वीप का एक रक्षक देव । हपु० ५.६४२ जननी। राजा जयवर्मा के दीक्षित होकर मोक्ष जाने के पश्चात् यह (२) कुण्डलवर द्वीप के मध्य में स्थित कुण्डलगिरि को दक्षिण सुदर्शना गगनी के पास रत्नावली व्रत करके अच्युत स्वर्ग के अनुदिश दिशा सम्बन्धी इस नाम का एक कूट । महापद्म देव की यह निवास- . विमान म दव हुइ । मपु० ७.२८-४४ भूमि है । हपु० ५.६९२ (६) वाराणसी नगरी के राजा अकम्पन की रानी । इसके हेमांगद (३) आकाशस्फटिक मणि से निर्मित पश्चिम द्वार का एक नाम । आदि सौ पुत्र तथा सुलोचना और लक्ष्मीमतो ये दो पुत्रियाँ थीं। हपु०५७.५९ मपु० ४३.१२४, १३०-१३५ (४) अवसर्पिणो काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न चौथे (७) भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित मनोहर बलभद्र । ये भरतक्षेत्र की द्वारवती नगरी के राजा सोमप्रभ और देश में रत्नपुर नगर के राजा पिंगल की रानी। यह विद्युत्प्रभा की उनकी रानी जयवती के पुत्र थे । पुरुषोत्तम नारायण इनका माई जननी थो । मपु० ४७.२६१-२६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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