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________________ ३२८:जैन पुराणकोश रामवत्ता-पक्मिणी चलकर यहाँ आये थे और अज्ञातवास के बारह वर्षों में ग्यारह वर्ष उन्होंने इसी पर्वत पर बिताये थे। यहीं से चलकर वे विराट नगर गये थे । हपु० ४६.१७-२३ रामवत्ता-मेरु गणधर के नौवें पूर्वभव का जीव-पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र और रानी हिरण्यवती की पुत्री। यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन की रानी थी। इसका मंत्री श्रीभूति सत्यघोष नाम से प्रसिद्ध था । पद्मखण्डपुर के भद्रमित्र के धरोहर के रूप में रखे गये रत्न उसे देने से मंत्री के मुकर जाने पर इसने उसके साथ जुआ खेला और जुएँ में उसका यज्ञोपवीत तथा नामांकित अंगूठी जीत ली और अंगूठी अपनी निपुणमती धाय को देकर अपने चातुर्य से श्रीभूति मंत्री के घर से भद्रमित्र का रत्नों का पिटारा उसकी स्त्री के पास से अपने पास मंगवा लिया था। राजा ने भी अपने रत्न उस पिटारे में मिलाकर भद्रमित्र से अपने रत्न ले लेने के लिए जैसे ही कहा था कि उसने उस पिटारे से अपने रत्न ले लिए थे। इस प्रकार भद्रमित्र को न्याय दिलाने और अपराधी मंत्री को दण्डित कराने में इसका अपूर्व योगदान रहा । भद्रमित्र मरकर स्नेह के कारण इसका ज्येष्ठ पुत्र सिंहचन्द्र हुआ । पूर्णचन्द्र इसका छोटा पुत्र था। इसके पति को मंत्री श्रीभूति के जीव अगन्धन सर्प ने डसकर मार डाला था। पति के मर जाने पर इसके बड़े पुत्र सिंहचन्द्र को राजपद और छोटे पुत्र पूर्णचन्द्र को युवराज पद मिला। इसने पति के मरने के पश्चात् हिरण्यमति आर्यिका से संयम धारण किया। इसके संयमी हो जाने पर इसके बड़े पुत्र सिंहचन्द्र ने भी अपने छोटे भाई पूर्णचन्द्र को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली। अपने पुत्र को मुनि अवस्था में देखकर यह हर्षित हुई थी। इसने उनसे धर्म के तत्त्व को समझा था । अन्त में यह पुत्र स्नेह से निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग के भास्कर विमान में देव हुई । मपु० ५९.१४६-१७७, १९२-२५६, हपु० २७.२०-२१, ४७-५८ रामपुरी-वनवास के समय में राम-लक्ष्मण के लिए यक्षराज पूतन द्वारा विन्ध्य-वन में निर्मित एक नगरी। राम के लिए निर्मित होने से यह नगरी इस नाम से अभिहित हुई। राम के द्वारपाल, भट, मंत्री, घोड़े, हाथी जैसे अयोध्या में थे वैसे ही इस नगरी में भी थे। पपु० ३५. ४३-४५, ५१-५३ रामभद्र-कृष्ण का भाई बलभद्र । हपु० ५०.९३ रामा-तीर्थङ्कर सुविधिनाथ की जननी। यह भरतक्षेत्र की काकन्दो नगरी के राजा सुग्रीव की रानी थी । पपु० २०.४५ रावण-(१) भार्गववंशी राजा शरासन का पुत्र । यह द्रोणाचार्य का दादा और विद्रावण का पिता था । हपु० ४५.४६-४७ (२) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष एवं आठवाँ प्रतिनारायण । यह राजा रत्नश्रवा और केकसी रानी का पुत्र था। लोक में दशानन नाम से विख्यात हुआ था। इसकी अठारह हजार रानियां थीं। इनमें मन्दोदरी प्रमुख थी। वेदवती की पर्याय में सीता के जीव के साथ यह सम्बन्ध करना चाहता था । इसी संस्कार से इसने सीता का हरण किया था। वेदवती की प्राप्ति के लिए इसने वेदवती के पिता श्रीभूति ब्राह्मण की हत्या की थी। फलतः श्रीभूति के जीव लक्ष्मण ने उसे मारा । पूर्वभव में सीता के जोव को रावण के जीव के द्वारा भाई के वियोग का दुःख उठाना पड़ा था, यही कारण है कि सीता भी इसके घात में निमित्त हुई। पपु० ७.१६५, २२२, ४६.२९, १०६.२०२-२०८, १२३.१२१ १३०, वीवच० १८.१०१, ११४-११५ दे० दशानन राष्ट्रकूट-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश के वृद्ध ग्राम का एक ___ वैश्य । रेवती इसकी स्त्री और भगदत्त तथा भवदेव इसके पुत्र थे। मपु० ७६.१५२-१५३ राष्ट्रवर्धन-(१) सुराष्ट्र देश की अजाखुरी नगरी का राजा। विनया इसकी रानी, नमुचि पुत्र तथा सुसीमा पुत्रो थी। कृष्ण ने इसके पुत्र को मारकर इसको पुत्री का हरण किया था। अन्त में इसने पुत्री के लिए वस्त्राभूषण तथा कृष्ण के लिए रथ, हाथी आदि भेंट में देकर पुत्री को कृष्ण के साथ विवाह दिया था। हपु० ४४.२६-३२ (२) भरतक्षेत्र का एक देश । यहाँ का राजा अर्ध अक्षौहिणी सेना का स्वामी था । हपु० ५०.७० राहु-ज्योतिर्लोक के देव । इनके विमान आठ मणियों से निर्मित तथा श्याम होते हैं । ये चन्द्र-सूर्य के नीचे रहते हैं। इनके विमान एक योजन चौड़े, इतने ही लम्बे तथा ढ़ाई सौ धनुष मोटे होते हैं । हपु० ६.१७-१८ राहुभद्र-एक मुनि । पोदनपुर नगर के राजा पूर्णचन्द्र ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। हपु० २७.५५-५६ रिपुंजयपुर-विद्याधरों का एक नगर । यहाँ का राजा अपने मन्त्रियों के साथ सहयोग करने रावण के पास आया था। रावण ने भी यहाँ के विद्याधर को अस्त्र, वाहन और कवच देकर सम्मानित किया था। पपु० ५५.८७-८९ रिपुदम-तीर्थङ्कर संभवनाथ के पूर्वभव के पिता । ये पुण्डरोकिणी नगरी के राजा थे । पपु० २०.११, २५ रिपुजयपुर-जयकुमार के साथ दीक्षित होनेवाला भरतेश चक्रवर्ती का एक पुत्र । मपु० ४७.२८१-२८३ रुक्मगिरि-विजया पर्वत का अपर नाम । पपु० २१.३-४ रुक्मण-भीष्मपितामह के पिता । ये धृतराज के भाई थे। राजपुत्री गंगा इनकी रानी थी। हपु० ४५.३५ रुक्मनाभ-राजा रुधिर का पौत्र । कृष्ण ने इसे कोशल देश का राजा ___ बनाया था । हपु० ५३.४६ रुक्माभ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९७ रुक्मिकूट-रुक्मी पर्वत का दूसरा कूट । हपु० ५.१०२ दे० रुक्मी रुक्मिणी-(१) रावण की रानी । पपु० ७७.१३ (२) कुण्डिनपुर के राजा भीष्म और रानी श्रीमती की पुत्री। इसके पिता ने इसे शिशुपाल को देना चाहा था किन्तु नारद के कहने पर कृष्ण शिशुपाल को मारकर तथा रुक्मी को नागपाश से बांधकर Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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