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________________ २८६ : जैन पुराणकोश (४) चन्द्रवंशी राजा सोमयश का पुत्र और सुबल का पिता । पपु० ५.११-१२, हपु० १३.१६-१७ (५) वृषभदेव के छियासठवें गणधर । हपु० १२.६६ (६) तीर्थकर-मुनिसुव्रत के एक गणधर । मपु० ६७.११९ (७) उत्सर्पिणी काल का छठा नारायण । मपु० ७६.४८८ (८) नाकार्धपुर के राजा मनोजव और रानी वेगिनी का पुत्र । आदित्यपुर के राजा विद्यामन्दर विद्याधर की पुत्री श्रीमाला के स्वयंवर में यह सम्मिलित हुआ था। पपु० ६.३५७-३५८, ४१५-४१६ (९) चौथे बलभद्र सुप्रभ के पूर्वजन्म का नाम । पपु० २०.२३२ (१०) राम का पक्षधर एक विद्याधर राजा। इसने व्याघ्ररथ पर आसीन होकर युद्ध किया था । पपु० ५८.४ (११) धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा धनंजय और रानी जयसेना का पुत्र । नारायण अतिबल इसका छोटा भाई था। अतिबल की आयु पूर्ण हो जाने पर इसने समाधिगुप्त मुनिराज के पास दीक्षा लेकर अनेक तप तपे थे । आयु के अन्त में शरीर छोड़कर यह प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुआ। मपु० ७.८०-८३ (१२) अच्युत स्वर्ग का एक दैव । पूर्वभव में यह जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश के पृथ्वीनगर का नृप था। जयसेना इसकी रानी और रतिषेण तथा धृतिषेण पुत्र थे। मपु० ४८.५८ महाबली-महाब्रह्मपदेश्वर (१७) बंग देश के कान्तपुर नगर के राजा सुवर्णवर्मा और रानी विद्युल्लेखा का पुत्र । इसका लालन-पालन मामा के यहाँ चम्पानगरी में हुआ था। पूर्व निश्चयानुसार मामा की पुत्री कनकलता से इसका विवाह होने ही वाला था कि विवाह के पूर्व ही दोनों का समागम हो गया । इससे लज्जित होकर दोनों कान्तपुर गये किन्तु इसके पिता ने इसे दूसरे देश जाने के लिए कहा । ये दोनों प्रत्यन्तनगर में रहने लगे। इन दोनों ने मुनिगुप्त मुनि को आहार देकर पुण्य संचय किया । वन में घूमते हुए किसी विषैले सर्प द्वारा इसे काटे जाने से यह वन में ही मर गया था। पति को मृत देखकर इसकी स्त्री कनकलता ने भी तलवार से आत्मघात कर लिया। मपु० ७५.८२-९४ (१८) एक असुर । पूर्वभव में यह अश्वग्रीव का रत्नायुध नामक पुत्र था। मपु० ६३.१३५-१३६ (१९) राजा दशरथ का सेनापति । इसने यज्ञ में होनेवाले पुण्यपाप की उपेक्षा कर यज्ञ में राम और लक्ष्मण दोनों कुमारों का प्रभाव दिखलाना श्रेयस्कर माना था । मपु० ६७.४६३-४६४ (२०) पलाशद्वीप सम्बन्धी पलाशपुर नगर का राजा । इसको रानी कांचनलता तथा पुत्री पद्मलता थी । इसे इसके भागीदार ने तलवार से मार डाला था । मपु० ७५.९७-९८, ११८-१२० (२१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेय का एक नाम । मपु० २५.१५२ (२२) सगर चक्रवर्ती के दूसरे पूर्वभव का जीव । मपु० ४८.१४३ (२३) अनागत छठा नारायण । मपु० ७६.४८८ महाबली-बाहुबली का पुत्र । बाहुबली इसे राज्य देकर दीक्षित हो गये थे। मपु० ३६.१०४ महाबाहु-(१) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावतो देश की पुण्डरोकिणी नगरो के राजा वज्रसेन का पुत्र । यह पूर्वभव में महाबल राजा का आनन्द नामक पुरोहित था। यह मरकर सवार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ था। मपु० ११.९, १२, १६० (२) विद्याधर विनमि का पुत्र । हपु० २२.१०५ (३) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३४ (४) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का अड़तीसवाँ पुत्र । पापु० ८.१९७ (५) राक्षसवंशी एक विद्याधर । यह लंका का राजा था। पपु० (१३) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिणी तट पर स्थित मंगलावती देश में रत्नसंचयनगर का नप। इसने अपने पुत्र धनपाल को राज्य देकर विमलवाहन गुरु के पास संयम धारण कर लिया था। पश्चात् यह ग्यारह अंग का पाठी हुआ । सोलह कारण भावनाओं के चिन्तन से तीर्थकर प्रकृति का बन्ध कर आयु के अन्त में इसने समाधिमरण पूर्वक देह त्यागी और विजय नामक प्रथम अनुत्तर में अहमिन्द्र हुआ। मपु० ५०.२-३, १०-१३, २१-२२, ६९ (१४) बलभद्र सुप्रभ के दूसरे पूर्वभव का जीव-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में नन्दन नगर का नृप । शरीर आदि के नश्वर स्वरूप का बोध हो जाने से इसने पुत्र को राज्य देकर अर्हन्त प्रजापाल से संयम धारण करके सिंह-निष्क्रीडित तप किया । अन्त में यह संन्यास मरण करके सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। मपु० ६०.५८-६२ (१५) कौशाम्बी नगरी का राजा । इसकी श्रीमती नाम की रानी और श्रीकान्ता नाम की पुत्री थी । इसने श्रीकान्ता का विवाह इन्द्रसेन से किया था। श्रीकान्ता के साथ इसने अनन्तमति नाम की एक दासी भी भेजी थी। इस दासी के कारण इन्द्रसेन और उसके भाई उपेन्द्रसेन में युद्ध होने की तैयारी सुनकर यह उन्हें रोकने गया किन्तु रोकने असमर्थ रहने से विष-पुष्प सूंघकर मर गया था। मपु० ६२.३५१- ३५५, पापु० ४.२०७-२१२ (१६) एक केवली । ये तीथंकर नेमिनाथ के दूसरे पूर्वभव के जीव श्रीदत्त के पिता सिद्धार्थ के दीक्षा गुरु थे । मपु० ६९.१२-१४ महाबुद्धि-एक राजा । यह भरत (दशरथ के पुत्र) के साथ दीक्षित हो गया था। पपु० ८८.१-४ महाबोधि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४५ महाब्रह्मपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३१ महाब्रह्मपदेश्वर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३१ For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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