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________________ २२८ : जैन पुराणकोश पुष्पकरण्डक पोदनपुर का एक कुमुमोदान मपु० ६२.९९ ७४. १४२ पुष्पगिरि - एक पर्वत । पारियात्र के बाद भरतेश की सेना इस पर्वत पर आयी थी । मपु० २९.६८ पुष्पचारण एक ऋद्धि इसद्धि से पुष्पों और उनमें रहनेवाले जीवों को क्षति पहुँचाये बिना पुष्पों पर गमन किया जा सकता है । मपु० २.७३ पुष्पबू (१) भरतक्षेत्र के विजयार्थ पर्वत की दक्षिणश्रेणी के नित्या लोक नगर के राजा चन्द्रचूल और उसकी रानी मनोहरी से उत्पन्न सात पुत्रों में पांचवीं पुत्र । यह चित्रांगज, गरुड़ध्वज, गरुडवाहन और मणिचूल का अनुज तथा गगननन्दन और गगनचर का अग्रज था । मपु० ७१.२४९-२५२ (२) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का छप्पनवाँ नगर । अपरनाम पुष्पचूड है । मपु० १९.७९, हपु० २२.९१ पुष्पदत्ता - भरतक्षेत्र के स्थूणागार नगर के भारद्वाज ब्राह्मण की भार्या । यह मरीचि के जीव पुष्यमित्र की जननी थी। मपु० ७४.७०-७१ दे० पुष्यमित्र पुष्पदन्त - ( १ ) घातकीखण्ड में पूर्व भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी का चक्रवर्ती राजा । इसकी प्रीतिकरी रानी और सुदत्त पुत्र था। मपु० ७१.२५६-२५७ (२) राजपुर नगर निवासी धनी मालाकार । मपु० ७५.५२७ ५२८ (३) श्रुत को ग्रन्थारूढ करनेवाले एक आचार्यं । तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के पश्चात् छः सौ तिरासी वर्ष बीत जाने पर काल दोष से श्रुतज्ञान की हीनता होने लगी । तब इन्होंने आचार्य भूतबलि के साथ अवशिष्ट श्रुत को पुस्तकारूढ़ किया और सब संघों के साथ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन उसकी महापूजा की। वीवच० १. ४१-५५ (४) क्षीरवर द्वीप का एक रक्षक व्यन्तर देव । हपु० ५.६४१ (५) एक शुल्लक विष्णुकुमार मुनि के गुरु ने मुनियों पर हस्तिनापुर में बलि द्वारा किये जाते हुए उपसर्ग को जानकर दुख प्रकट किया था । क्षुल्लक ने उनसे यह जानकर कि विक्रिया ऋद्धि धारक विष्णुकुमार मुनि इस उपसर्ग को दूर कर सकते हैं ये उनके पास पहुँचे। इनके द्वारा प्राप्त सन्देश से विष्णुकुमार ने की गुरु आज्ञा के अनुसार इस उपसर्ग का निवारण किया । हपु० २०. २५- ६० (६) अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा- सुषमा काल में उत्पन्न शलाकापुरुष एवं नौवें तीर्थङ्कर । अपरनाम सुविधिनाथ | चन्द्रप्रभ तीर्थङ्कर के पश्चात् नव्वे करोड़ सागर का समय निकल जाने पर ये फाल्गुन कृष्ण नवमी के दिन भरतक्षेत्र में स्थित काकन्दी नगरी के स्वामी सुपीव की महारानी अमरामा के गर्भ में आये और मार्गी शुक्ला प्रतिपदा के दिन जैत्रयोग में इनका जन्म हुआ । जन्माभिषेक के Jain Education International पुष्करण्डक-पुष्पमित्र पश्चात् इन्द्र ने इन्हें यह नाम दिया। इनकी आयु दो लाख पूर्व की थी और शरीर सौ धनुष ऊँचा था। इनका पचास हजार पूर्व का समय कुमारावस्था में बीता । पचास हजार पूर्व अट्ठाईस पूर्वांग वर्ष इन्होंने राज्य किया । उल्कापात देखकर ये प्रबोध को प्राप्त हुए । तब इन्होंने अपने पुत्र सुमति को राज्य सौंप दिया और सूर्यप्रभा नाम की शिविका में बैठकर ये पुष्पक वन गये। वहाँ ये मार्गशीर्ष के की प्रतिपदा के दिन अपराह्न में षष्ठोपवास का नियम लेकर एक हज़ार राजाओं के साथ दीक्षित हुए। दीक्षित होते ही इन्हें मनः पर्ययज्ञान हो गया । शैलपुर नगर के राजा पुष्यमित्र के यहाँ प्रथम पारणा हुई । छद्मस्थ अवस्था में तप करते हुए चार वर्ष बीत जाने पर कार्तिक शुक्ला द्वितीया को सायं वेला में मूल नक्षत्र में दो दिन का उपवास लेकर नागवृक्ष के नीचे स्थित हुए। वहाँ इन्होंने घातिया कर्मों का नाश करके अनन्त चतुष्टय प्राप्त किया । इनके संघ में विदर्भ आदि अठासी गणधर दो लाख मुनि, तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकाएँ, दो लाख श्रावक और पाँच लाख श्राविकाएँ थीं। आर्य देशों में विहार करके भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की अपराह्न वेला में, मूल नक्षत्र में एक हज़ार मुनियों के साथ इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। दूसरे पूर्वभव में ये पुण्डरीकी नगरी के महापद्म नामक नृप थे, पहले पूर्वभव में ये प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुए वहाँ से च्युत होकर इस भव में ये तीर्थर हुए म २. १३०, ५०.२-२२, ५५.२३-३०, ३६-३८, ४५-५९, ६२, पपु० ५. २१४, २०.६३, हपु० १.११, ६०.१५६-१९०, ३४१-३४९, वीवच० १.१९, १८.१०१-१०६ 1 पुष्पदन्ता - ( १ ) तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के संघ की प्रमुख आर्थिका । मपु० ६७.५३ (२) स्थूणागार नगर के निवासी भारद्वाज द्विज की पत्नी । यह पुरूरवा के जीव पुष्यमित्र की जननी थी । वीवच० २.११२, दे० पुष्पदत्ता पुष्पनखा - राक्षस वंश के स्थापक राजा राक्षस के युवराज बृहत्कीर्ति की स्त्री । पपु० ५.३८१ पुष्पपालिता -- एक मालिन की पुत्री । श्रावक के व्रतों को धारण करने से यह स्वर्ग की शची देवी हुई । मपु० ४६.२५७ पुष्पप्रकीर्णक-लंका का एक पर्वत । सीता इस पर्वत पर भी रही थी । पपु० ७९.२७-२८ पुष्पमाल — विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का बावनवाँ नगर । हपु० २२.९१ पुष्पमाला - नन्दनवन में स्थित सागरकूट की स्वामिनी दिक्कुमारी । हपु० ५.३२९-३३३ पुष्पमित्र - ( १ ) शैलपुर नगर का राजा। इसने तीर्थङ्कर पुष्पदन्त को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५५.४८ (२) तीर्थङ्कर महावीर के पूर्वभव का नाम । इसका दूसरा नाम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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